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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गयकन्ना घंटकरा, मंडलवइ अंगरक्खगा तस्स । दद्दुल थइयाइत्तो, गलियंगुलि नामओ मंती ॥ १६ ॥ अर्थ- गल गए हैं कान जिन्होंके ऐसे पुरुष घंटा बजानेवाले हैं रक्त मंडल रोगवाले पुरुष उम्बरराणेके अंगरक्षक हैं दादके रोगवाले पुरुष ताम्बूल धारनेवाले हैं और गलितअंगुलि नामका मंत्री है ॥ १६ ॥ केवि पसूइयवाया, कच्छा दद्दे (उभे) हिं केवि विकराला । केवि विउंचियपामा, समन्निया सेवगा तस्स १७ अर्थ-उस उम्बर राजाके कितनेक सेवक वातरोग युक्त हैं और कितनेक सेवकोंकी कक्षा दादोंसे विकराल है। कितनेक पामसहित हैं विचर्चिका जातिकी पाम उस करके सहित हैं ॥ १७ ॥ एवं सो कुट्टियपेडएण, परिवेढिओ महीवीढे । रायकुलेसु भमंतो, मुहमग्गियदाणं पगिन्हेइ ॥ १८ ॥ अर्थ - इस प्रकार से वह उम्बर राजा कोड़ियोंके समूहसे चौतर्फसे परिवरा हुआ पृथ्वीतलपर फिरता हुआ राजा लोगोंके घरोंमें मुखमार्गित दान लेता है ॥ १८ ॥ सो एसो आगच्छइ, नरवर ! आर्डवरेण संजुत्तो । तामग्गमिणं मुत्तुं, गच्छह अन्नं दिसं तुभे ॥१९॥ अर्थ - हे महाराज ! वह यह उम्बर राजा आडंबर सहित आता है इस लिए इस मार्गको छोड़के और दिशि तरफ, आप चलें ॥ १९ ॥ तो बलिओ नरनाहो, अन्नाइ दिसाइ जाव ताव पुरो । तं पेडयंपि तीए, दिसाइ बलियं तुरियं तुरियं ॥ २०॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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