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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीपाल चरितम् ॥१५६॥ दसविहधम्मं तह बारसेव, पडिमाओ जे य कुवंति। बारसविहं तवोवि य, ते सवे साहुणो वंदे ॥१२६१॥ भाषाटीका अर्थ-और दशप्रकारका क्षमाआदि श्रमणधर्म धारते हैं बारह साधु सम्बन्धी प्रतिमा अभिग्रह विशेष धारते हैं। और अनशनादि बारह १२ प्रकारका तप करते हैं उन सर्व साधुओंको मैं नमस्कार करूं ॥ १२६१॥ जे सतरसंजमंगा, उबूढाठारसहससीलंगा । विहरंति कम्मभूमिसु, ते सवे साहुणो बंदे ॥ १२६२ ॥ __अर्थ-सतरह प्रकारका संयम शरीर से धारनेवाले और उत्कर्षकरके धारण किया है अठारहहजार शीलांगरथ | जिन्होंने ऐसे ५ भरत ५ एरवत ५ महाविदेह इन पनरह कर्म भूमिमें विचरते हैं उन सर्व साधुओंको मैं नमस्कार | करूं॥ १२६२॥ |जं सुद्धदेवगुरुधम्म, तत्तसंपत्तिसदहणरूवं । वन्निजइ समत्तं तं सम्मदंसणं नमिमो ॥ १२६३ ॥ ___ अर्थ-शुद्ध निर्दोष देव गुरु धर्मही तत्व सम्पदा का श्रद्धान रूप स्वरूप जिसका ऐसा सम्यक्त्व सूत्र में वर्णन किया जावे उन सम्यक् दर्शनको मैं नमस्कार करूं ॥ १२६३ ॥ जावेगकोडाकोडी,-सागरसेसा न होइ कम्मठिई । ताव न जं पाविजइ, तं सम्मइंसणं नमिमो॥१२६४॥15 __अर्थ-जितने एक कोड़ा कोड़ सागरोपम कर्मोंकी स्थिति बाकी न रहे तबतक वह नहीं पावे है उन सम्यक् C ॥१५६॥ दर्शनको मैं नमस्कार करूं ॥ १२६४ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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