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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ - तीर्थंकर रूप सूर्य अस्त होनेसे और सामान्यकेवलीरूप चन्द्रके भी अस्त होनेसे जे गुरू दीपकके जैसा इस लोकमें पदार्थों को प्रगट करें हैं उन आचार्योंको मैं नमस्कार करूं हूं ॥ १२४१ ॥ | जे पावभरकंते, निवडते भवमहंधकूवंमि । नित्थारयंति जीवे, ते आयरिए नम॑सामि ॥ १२४२ ॥ अर्थ -- पापका समूह उस करके आक्रांत ऐसा संसार रूप महान् अंधकूप उसमें पड़ते हुए जीवोंको जे गुरू तारै उन आचार्योंको मैं नमस्कार करूं ।। १२४२ ॥ | जे मायतायबंधवपमुहेहिंतोवि इत्थ जीवाणं । साहंति हियं कज्जं, ते आयरिए नम॑सामि ॥ १२४३ ॥ अर्थ - इस संसार में जिके आचार्य जीवोंके माता पिता भाई वगैरह से जादा कार्य सिद्ध करे है उन आचार्योंको मैं नमस्कार करूं हूं ॥ १२४३ ॥ जे बहुलद्धिसमिद्धा, साइसया सासणं पभावंति । रायसमा निश्चिंता, ते आयरिए नम॑सामि १२४४ अर्थ - बहुत लब्धियों करके समृद्धिवान इसीसे अतिशयों सहित जिनशासन की प्रभावना करे हैं कैसे गुरू राजाके समान और गई है चिंता जिन्होंसें ऐसे निश्चिंत आचार्योंको मैं नमस्कार करूं ।। १२४४ ।। जे वारसंगसझाय, - पारगा धारगा तयत्थाणं । तदुभयवित्थाररया, ते ऽहं झाएमि उज्झाए । १२४५ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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