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________________ Shri Mahavain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir श्रीपाल- अर्थ-उसके अनन्तर श्रीपाल राजाके मदनसुंदरी प्रमुख नव रानियोंके निरुपम गुणयुक्त त्रिभुवनपालादि नव पुत्र भाषाटीकाचरितम् हुए ॥ १२१३ ॥ सहितम्गयरहसहस्सनवगं, नव लक्खाइं च जच्चतुरयाणं । पत्तीणं नवकोडी, तस्स नरिंदस्स रजमि॥१२१४॥ ॥१५० ___ अर्थ-उस श्रीपाल राजाके नव हजार ९००० हाथी और नव हजार ९००० रथ और नव लाख ९००००० जातिवान अच्छे लक्षणवाले घोड़े और नव करोड ९००००००० प्यादल सेनाके सिपाही इतनी सेना थी ॥ १२१४ ॥ एवं नव नव लीलाहिं, चेव सुक्खाइं अणुहवंतो सो । धम्मनिईए पालइ, रजं निकंटयं निच्चं ॥१२१५॥ | अर्थ-इस प्रकार नव २ क्रीड़ा करके सुख भोगवता हुआ वह श्रीपाल राजा धर्मनीतिसे निरंतर निष्कंटक राजदू ६पाले ॥ १२१५॥ रजं च तस्स पालंतयस्स, सिरिपालनरवरिंदस्स। जायाइं जाव सम्मं, नव वाससयाइं पुन्नाइं ॥१२१६॥ 2 अर्थ-राज्य पालते उस श्रीपाल राजाको जितने ९०० नवसै वर्ष अच्छी तरहसे पूर्ण भए ॥ १२१६ ॥ ताव निवोतं तिहुयणपालं,रजंमि ठावइत्ताणं। सिरिसिद्धचक्कनवपयलीणमणो संथुणइ एवं ॥१२१७॥ ___ अर्थ-उतने राजा श्रीपाल वह पूर्वोक्त त्रिभुवनपाल अपने बड़े पुत्रको राज्यमें स्थापके श्रीसिद्धचक्रमें जे नवपद! ॥१५॥ उन्होंमें लगाहै मन जिसका ऐसा वक्ष्यमाण प्रकारसे स्तुति करे ॥ १२१७ ॥ ANRESASSASSASSASANAK REASSISHESLARARAS For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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