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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चरितम् Antenton ॥१४७॥ सोलस अणाहएसु य, गरुयाई सक्कराइ लिंगाई। मंडावेइ नरिंदो, नाणामणिरयणचित्ताई ॥११९३॥||भाषाटीका तसहितम्६ अर्थ-और सोलह अनाहतोंमें सोलह शर्कराका ढिगला करे नानाप्रकारके मणिरत्नों करके विचित्र ऐसे मंडावे ११९३3 इगिसोलसपंचसु सीइ, दोसु चउसहि सरसदक्खाओ। कणयकच्चोलियाहिं, मंडावइ अवग्गेसु ११९४ ___ अर्थ-आठ वर्गों में पहले अवर्गमें सोलह सरसदाख पांच वर्गों में एक २ में सोलह २ चढानेसे ८० दाख और दोवर्ग यवर्ग शवर्गमें बत्तीस २ दाख चढानेसे ६४ यह दाख सोनेकी कटोरियोंमें चढावे ॥ ११९४ ॥ ६ मणिकणगनिम्मियाइं, नरनाहो अट्टवीयपूराइं । वग्गंतरगयपढमे, परमेट्ठिपयंमि ठावेइ ॥ ११९५॥ __अर्थ-राजा श्रीपाल मणिरत्न और सोनेसे रचे हुए आठ बिजोरेके फल वर्गोंके अंतरमें रहा हुआ प्रथम परमेष्ठी पद नमो अरिहन्ताणं इसमें स्थापे ॥ ११९५ ॥ खारिकजयाइं ठावइ, अडयाललद्धिठाणेसु । गुरुपाउयासु असु, नाणाविहदाडिमफलाई॥११९६॥ __ अर्थ-अड़तालीस ४८ लद्धि पदोमें खारिकका ढिगला करे और आठ गुरुपादुकामें नानाप्रकारके दाडिमके फल चढावे ॥ ११९६॥ ॥१४७॥ नारिंगाइफलाइं, जयाइठाणेसु अट्ठसु ठवेइ । चत्तारि उ कोहलए, चक्काहिट्ठायगपएसु ॥ ११९७ ॥ i n For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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