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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbalirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir अर्थ-पढ़ता हुआ पढाता हुआ साधु वगैरहको रहनेको स्थान और भोजन वस्त्रादि पूर्ण करताहुआ द्रव्य भावसे भक्ति करता हुआ उपाध्याय पदकी आराधना करे ॥ ११७३ ॥ अभिगमणवंदणनमंसहिं, असणाइवसहिदाणेहिं । वेयावच्चाईहिं य, साहुपयाराहणं कुणइ ॥११७४॥ । अर्थ-सामने जाना स्तुति करना नमस्कार करना और आहार वगैरह और उपाश्रय देने करके इत्यादि वेयावच्च करने करके साधु पदका आराधन करे ॥ ११७४ ॥ रहजत्ताकरणेणं, सतित्थजत्ताहिं संघपूयाहि । सासणपभावणाहिं, सुदंसणाराहणं कुणइ ॥ ११७५॥ अर्थ-रथयात्रा करनेकर तीर्थयात्रा और संघपूजा करनेकर शासनकी प्रभावना करनेसे सम्यक्दर्शन पदका आराधन करे ॥ ११७५॥ सिद्धंतसत्थपुत्थय, कारावणरक्खणच्चणाईहिं । सज्झायभावणाहिं, नाणपयाराहणं कुणइ ॥ ११७६ ॥ अर्थ-सिद्धान्तका पुस्तक लिखाने करके और यत्नसे रक्षा करनेकर और धूप चंदन वस्त्रादिकसे पूजना और स्वाध्याय वाचनादि पांच प्रकारका करनेसे तथा भावना ज्ञानका स्वरूप विचारने रूप करके ज्ञानपदकी आराधना करे॥ वयनियमपालणेणं, विरइकपराण भत्तिकरणेणं । जइधम्मणुरागेणं, चारित्ताराहणं कुणइ ॥११७७॥ श्रीपा.च.२५ For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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