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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir CAKACCAG INI अर्थ-और उस नवमे देवलोकसेभी अधिक २ मनुष्य देवका सुख भोगवता हुआ नवमे भवमें निश्चय शाश्वत सुख है जहां ऐसा मोक्ष पावेगा ॥ ११६४ ॥ दूतं सोऊणं राया, साणंदो नियगिहमि संपत्तो । मुणिनाहोवि ह तत्तो, पत्तो अन्नत्थ विहरंतो ॥११६५॥ है अर्थ-वह मुनिका वचन सुनके राजा श्रीपाल आनंदसहित होके अपने घर गया तदनंतर मुनीन्द्रभी विहार करके और नगरादिकमें गए ॥ ११६५ ॥ सिरिपालोवि हु राया, भत्तीए पिययमाहिं संजुत्तो। पुब्बुत्तविहाणेणं, आरहइ सिद्धवरचक्कं ॥ ११६६ ॥ है अर्थ-श्रीपालराजाभी नवरानियों सहित भक्तिकरके पूर्वोक्त विधिसे सिद्धचक्रका आराधन करे ॥ ११६६ ॥ अह मयणसुंदरी भणइ, नाह ? जइया तए कया पुदि । सिरिसिद्धचक्कपूया, तइया नो आसि भूरिधणं ६७ __ अर्थ-अथ मदनसुंदरी राजासे कहे हे नाथ जब आपने पहले श्रीसिद्धचक्रकी पूजा करी थी तब बहुत धन नहीं था ॥ ११६७ ॥ इन्हिं च तुम्ह एसा, रज्जसिरी अस्थि वित्थरसमेया। ता कुणह वित्थरेणं, नवपय पूयं जहिच्छाए ११६८ | अर्थ-इस वक्त में आपके यह राज्यलक्ष्मी विस्तार सहित है इस कारणसे आप अपनी इच्छासे विस्तार विधिसे 18नवपदोंकी पूजा करो ॥ ११६८ ॥ ESSASSASSASSINS RA For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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