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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir COCALCUCAUGUST ___ अर्थ-सिंह नामका राजा प्रहारोंसे पीड़ित भया एक महीनेकी अनशन सहित दीक्षा पालके मैं अजितसेन राजा भया कैसा में हूं बाल्यअवस्थामें तेरा राज्य लेनेवाला ऐसा ॥ ११५६ ॥ तेणंचिय वेरेणं, बद्धोहं राणएहिं एएहिं । पुवकयब्भासेणं, जाओ मे चरणपरिमाणो ॥ ११५७॥ ___ अर्थ-उसी वैरसे इन राणाओंने मेरेकू बांधा पूर्वभवमें जो कीना दीक्षाका अभ्यास उससे मेरा चारित्रका परिणाम |भया ॥ ११५७ ॥ सुहपरिणामेण मए, जाइं सरिऊण संजमो गहिओ। सोहं उपन्नावहि, नाणो नरनाह ? इह पत्तो ११५८ ६ अर्थ-मैंने शुभपरिणामसे जातिस्मरण पाके संयम ग्रहण किया हे नरनाथ उत्पन्न भया है अवधिज्ञान जिसको है ऐसा मैं यहां आया हूं ॥ ११५८ ॥ एवं जं जेण जहा, जारिसकम्मं कयंसुहं असुहं । तंतस्स तहा तारिस,-मुवट्टियंमुणसु इत्थ भवे ॥११५९॥ का अर्थ-इस प्रकारसे जिस प्राणीने जो शुभ अशुभ जैसा कर्म किया उस प्राणीके वह वैसा कर्म इस भवमें उसी प्रकादारसे समीपमें रहा हुआ जानो॥ ११५९ ॥ तं सोऊणं सिरिपाल,-नरवरो चिंतए सचित्तंमि । अहह अहो केरिसयं, एयं भवनाडयसरूवं ॥११६०॥ REACHEHRAICHARCHASESCRIG For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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