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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीपालचरितम् भाषाटीकासहितम्. ॥१२८॥ GALASSES ह भडोभिडंतो,च्छिन्नसिरो खग्गखेडयकरो य, गयसरुणसीसभारो, पणच्चए जायहरिसुब्ब १०३५/ अर्थ-कोई सुभट युद्धकरता बैरीने मस्तक काटदिया जिसका ऐसा ढाल तलवार जिसके हाथमें है ऐसा ऋणा जिसका गया होवे ऐसा मस्तकका भार गया वैसा मानता हुआ इसीकारणसे भया है हर्ष जिसको ऐसा सहर्षके जैसा रणाङ्गण नाटक करता है ॥ १०३५ ॥ तत्थय पप्पडभंगं, भजंति रहाय कोहलयभेयं । भिजति गया तुरया चिब्भडच्छेयं च छिजंति ॥१०३६॥ है अर्थ-उस संग्राममें रथोंका भंग पापड़के जैसा होवे है और हाथी कुष्मांडके जैसा विदारण किए जावे हैं और डाघोड़ा काकड़ीके जैसा काटे जावे हैं ॥ १०३६ ॥ तओ सत्थत्थरिया, बहमुंडमंडियाधउडिया भड । धडेहिं, अंतेहिं निरंतरया, भरिया मयहयगयसएहिं | अर्थ-तदनंतर वह संग्रामभूमि क्षणेकमें ऐसी भई यह दूसरी गाथाके अंतपदमें अव्रण है कैसी भई सो कहते हैं शस्त्रोंसे आस्तृत भई बहुत मस्तकोंसे भूषित भई और वीरोंके कलेवरोंसे ऊंचीनींची भई आंतर शरीरके अवयव विशेषसे व्याप्त भई और मरेहुए सैकड़ों हाथी घोड़ोंसे भरीगई ॥ १०३७ ॥ रुहिरोहजणियकदम,मज्झविमदिज्जमाणमडयाणं।कडयडसदरउद्दा, खणेण सारणमहीजाया ॥१०३८॥ AAR S ॥१२८॥ S For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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