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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १ मापाटीका श्रीपालचरितम् ॥१२७॥ सहितम् अर्थ-अन्य कोई स्त्री पुत्रसे कहे हे वत्स मैं शूरवीरकी पुत्री हूं और शूरवीरकी स्त्री हूं अब तेरेको वैसा युद्ध करना कि जिससे मैं शूरवीरकी माता हो जावें ॥ १०२६ ॥ द्धन्ना सच्चियनारी, जीए जणओ पईय पुत्तोय। वीरा-वयाय पयवी, समन्निया हंति तिन्नि वि ॥१०२७॥ | अर्थ-वही स्त्री धन्य है जिसका पिता १ और पति २ और पुत्र ३ यह तीनोंभी वीर पदवी सहित होवें ॥१०२७॥ कावि पइं पड़ जंपइ, महमोहोनाह नेव कायवो। जीवंतस्स मयस्स व, जंतुह पुढेि न मुंचिस्सं ॥१०२८॥ का अर्थ-कोईक स्त्री अपने भर्तारसे कहे हे नाथ मेरा मोह नहीं करना जिस कारणसे मैं तुह्मारे जीते हुए और मरे| हुएभी साथहीमें रहूंगी अर्थात् मरनेसे सती होंगी ॥ १०२८ ॥ कावि हु हसेइ रमणं,मह नयणहओवि होसिभयभीओ,नाह तुमविजुज्जल,-भल्लयघाए कहं सहसि १०२९ ___ अर्थ-कोई स्त्री अपने भर्तारको हंसे हे नाथ तुम मेरे नेत्रोंसे ताड़े हुए भयभीत होवोहो तब वीजलीके जैसा उज्ज्वल भाला खड्गादिकका प्रहार कैसे सहोगे ॥ १०२९॥ है इत्थंतरंमि उब्भड,-सुहडकयाडंबरं व असहंतो । सूरो फुरंततेओ, संजाओ पुत्वदिसिभाए ॥१०३०॥ ___ अर्थ-इस अवसरमें उद्धत सुभटोंने किया आडंबर नहीं सहता होवे वैसा सूर्य पूर्वदिशिमें उदय हुआ कैसा सूर्य बहुत है तेज जिसका चलता हुआ ऐसा सूर्य उदय भया ॥ १०३०॥ PORARS ॥१२७॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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