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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीपालचरितम् ॥१२४॥ CLICASSADORASSASSASSES __ अर्थ-हे महाराज आपने उस वक्तमें जो भाईका पुत्र श्रीपाल बालक राज्यमें स्थापा हुआ बालक होनेसे पृथ्वीका : भाषाटीका|भार उठानेमें याने सम्भालनेमें असमर्थ देखा ॥ १००१॥ | सहितम्. तो तं भारं आरोविऊण, निययंमि चेव खंधमि।सयलकलासिक्खणत्थं, जो य तए पेसिओ आसि १००२ | अर्थ-तदनंतर वह राज्यके भार आपने अपने कंधेपर स्थापके और श्रीपालको सर्वकला सीखनेके वास्ते आपने 2 | विदेश भेजाथा ॥ १००२॥ सो सयलकलाकुसलो, अतुलबलो सयलरायनय। चलणो, चउरंगबलजुओ तुह लहुयत्तकए इमो एइ॥ है। अर्थ-वह श्रीपाल सर्व कलामें कुशल और सर्वोत्कृष्ट बल सैन्य जिसके और सर्व राजाओं जिसके चरणोंमें नम स्कार किया है ऐसा और चतुरंग जो बल सैन्य उस करके युक्त यह आपको हल्का करनेके वास्ते आवे है ॥१००३॥ ता जुज्जइ तुझवि तंमि, रजभारावयारणं काउं, जं जुन्नथंभभारो, लोएवि ठविजइ नवेसु ॥१००४॥ __अर्थ-तिस कारणसे आपकोभी उस श्रीपालमें राज्यका भार अवतरण करना युक्त है जिस कारणसे लोकमें भी ₹ जीर्ण स्तंभोका भार नवीन स्तंभोंपर थापा जाय है ॥ १००४॥ ॥१२४॥ अन्नं च तस्स रन्नो, पयपंकयसेवणत्थमन्नेवि । वहवेवि हु नरनाहा, समागया संति भत्तीए ॥ १००५॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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