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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Por अर्थ-वह श्रीपालराजा सुसरा और साला और मामा प्रमुख राजाओंको औरभी सुभटोंको बहुमान सत्कार देवे ९८८ हाते सबेवि ह बहुभत्ति, संजुया भालमिलियकरकमला। सेवंति सया कालं, तंचिय सिरिपालभूवालं॥ | अर्थ-वे सर्व राजा बहुत भक्तिसहित इसी कारणसे लिलाटमे मिला हैं करकमल जिन्होंका ऐसे सर्वकालमें श्रीपाल राजाकी सेवा करे ॥९८९ ॥ अह अन्नदिणे मइसायरेण, सामंतमंतिकलिएणं । विन्नत्तो नरनाहो, भूमंडलमिलियभालेणं ॥९९०॥ ___ अर्थ-उसके अनंतर अन्य दिनमें सामंत मंत्रीसहित मतिसागर मंत्रीने श्रीपाल राजाको वीनती करी कैसा मति६ सागर भूमंडलमें लगा है लिलाट जिसका ऐसा ॥ ९९०॥ देव! तुमं बालोवि हु पियपट्टे ठाविओवि दुटेणं । उट्ठाविओसि जेणं, सो तुह सत्तू न संदेहो ॥९९१॥ | अर्थ-कैसे विनती किया सो कहते हैं हे देव हे महाराज आप बालक थे पिताके पट्टपर स्थापित किये थे जिस टू दुष्टने उठाया वह आपका शत्रु है इसमें सन्देह नहीं है ॥ ९९१॥ संतेवि हु सामत्थे, जो पियरपि सत्तूणा गहियं । नो मोयावइ सिग्छ, सो लोए होइ हसणिजो ९९२ IPI अर्थ-सामर्थरहते भी निश्चय जो पुरुष शत्रुने ग्रहण किया अपने पिताका राज्य शीघ्र पीछानहीं लेवे वह लोकोमें| हसने योग्य होवे है ॥ ९९२ ॥ t ortortortortor RRRRRrrrr For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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