SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 244
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ — मदनसुंदरीके जिनधर्म कल्पवृक्षके जैसा शोभन फलोंकरके फला और मेरे मिथ्याधर्म विषवृक्षके जैसा भया दुष्ट फल देनेवाला होनेसे ॥ ९७९ ॥ मयणा नियकुलउज्जालणिक्क, - माणिक्कदीवियातुल्ला । अहयं तु चीडउम्माडियब्ब, घणजणियमालिन्ना ॥ अर्थ - मदनसुंदरी अपने कुलको उज्वल करनेमें १ अद्वितीया माणिकके दीपिका सरीखी है मैं तो अपने कुलको मैला करनेके लिए स्यामकाचकी मणिके तुल्य भई ॥ ९८० ॥ मयणं दहूण जणा, जएह सम्मत्तसत्तसीलेसु । मं दहूणं मिच्छत्त, दप्पकंदप्पभावेसु ॥ ९८९ ॥ अर्थ- सुरसुंदरी कहती है अहो लोको मदनसुंदरीको देखके सम्यक्त्व सत्व सीलमें यल करो और मेरेको देखके मिथ्यात्व १ दर्प २ कंदर्प ३ इन्होंमें यत्न करो ॥ ९८१ ॥ इच्चाइ भणंतीए, तीए सुरसुंदरीइ लोयाणं । उप्पाइओ पमोओ, जो सो न हु नाडएहिं पुरा ॥ ९८२ ॥ अर्थ - इत्यादि पूर्वोक्त कहती सुरसुंदरीने लोकोंको जो हर्ष उत्पन्न किया वैसा हर्ष पहले नाटकमें कभी उत्पन्न नहीं हुआथा ॥ ९८२ ॥ सिरिपालेणं रन्ना, वेगेणाणाविओ य अरिदमणो । सुरसुंदरी य दिन्ना, बहुरिद्धिसमन्निया तस्स ॥ ९८३ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy