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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir __अर्थ-उस सार्थ पतिने भी अपने सार्य के साथ बब्बरकूल महाकाल राजाके नगरमें ले जाके दुकानमें खडी रखके | बेची ॥९७०॥ ||एगाए गणियाए, गहिऊणं नगीयनिउणाए। तह सिक्खविया य अहं,जह जाया नहिया निउणा ९७१/8 ___ अर्थ-नृत्य गीतमें निपुण एक वेश्याने खरीदी उसने मेरेको उस प्रकारसे सिखाई जिससे मैं निपुण नर्तकी भई ॥९७१॥ महकालनामएणं, बब्बरकूलस्स सामिणा तत्तो, नडपेडएण सहिया, गहियाऽहं नाडयपिएणं ॥९७२॥ __ अर्थ-तदनंतर महाकाल नामका बर्बरकूलके राजाने नटसमूहसहित नवनाटक इकट्ठा किया उसमें मेरेकूभी ग्रहणकरी कैसा महाकालराजा नाटक है प्यारा जिसको ऐसा ॥ ९७२॥ नाणाविहन।हिं, तेण नच्चाविऊण धूयाए । मयणसेणाइ पइणो, दिन्ना नवनाडयसमेया ॥ ९७३ ॥ | अर्थ-उस राजाने बहुत प्रकारका नाटक करवाके मदनसेना नामकी अपनी पुत्रीके भर्तारको नव नाटकके साथ मेरेकोभीदी ॥ ९७३ ॥ तस्स य पुरओ नच्चंतियाइ, जायाइं इत्तिय दिणाइं। परमहणा सकुडंबं, दहणं दुक्खमुल्लसियं ॥९७४॥ __ अर्थ-उस मदनसेनाके भर्तारके आगे नाटककर्ता मेरे इतने दिन भए परंतु इस वक्त अपने कुटुंबको देखके श्रीपा.च.२१ मेरेको दुःख भया ॥ ९७४ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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