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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीपा.च.२० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तो तीए साणंद, दिट्ठो सो समणसायरससंको । सिरिपालो भूवालो, सिणद्धमुद्धेहिं नयणेहिं ॥ ९९८ ॥ अर्थ —तदनंतर उस राजकन्याने आनन्द हर्ष सहित श्रीपाल राजाको स्निग्ध मुग्ध स्नेह सहित रमणीक नेत्रोंसे देखा | कैसा है श्रीपालराजा अपने मनरूप समुद्र के उल्लास करने में चन्द्रके जैसा जैसे चन्द्रोदयसे समुद्र उल्लास पावे है वैसा ॥९९८ ॥ महसेणो भणइ निवं, अम्हं तुम्हेहिं जीवियं दिनं । तो जीवयाओ अहियं, एयं गिन्हेह तुज्झेवि ९१९ अर्थ-बाद महसेनराजा श्रीपाल राजासे कहे आपने हमको जीवित दिया है तिस कारणसे हमारे प्राणोंसे भी अधिक प्यारी इस मेरी पुत्रीको ग्रहणकरो ॥ ९१९ ॥ I इय भणिऊणं रन्ना, नियकन्ना तस्स रायरायस्स । दिन्ना सा तेणावि हू, परिणीया झत्ति तत्थेव ९२० अर्थ - ऐसा कहके महसेन राजाने श्रीपाल महाराजको अपनी कन्यादी श्रीपाल महाराजने भी शीघ्र उसी ठिकाने उस कन्याका पाणिग्रहण किया ।। ९२० ॥ तीए य तिलयसुंदरी, सहियाओ ताओ अट्ठमिलियाओ। सिरिपालस्स पियाओ, मणोहराओ परं तहवि ९२१ अर्थ - तिलक सुंदरी सहित मनोहर सब लोगोंका मनहरनेवाली श्रीपालराजाकों आठरानी मिली तथापि श्रीपाल राजा नवमी प्रिया मदनसुंदरीको याद करे ॥ ९२१ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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