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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmanair 181 अर्थ-तिस कारणसे सम्यदृष्टि पूर्ण करनेको समर्थ होवे ऐसे समस्या पद बनाके देओ जिन्होंको पूर्ण करनेसे ! शुभाशुभ धर्मका परिणाम जाना जाय ॥ ८५०॥ . तो तीइ कुमारीए, अस्थि पइन्ना कया इमा जो उ। चित्तगयसमस्साओ पूरिस्सइ सो वरेयवो॥८५१॥ है अर्थ-तदनंतर उनकुमरीने यह प्रतिज्ञा करी है कि जो मनोगत समस्या पूर्ण करेगा वह पुरष हमारे वरना ॥८५१॥3 सोऊण तं पसिद्धिं, समागयाणेगपंडिया पुरिसा। पूरंति समस्साओ, परं न तीए मणगयाओ॥८५२॥ अर्थ-उस प्रसिद्धिको सुनके अनेक पंडितपुरष आए भए समस्या पूर्ण करे है परंतु उस कन्याकी मनोगत समस्या कोई पूर्ण करने को नहीं समर्थ भया है ॥ ८५२॥ ४एवं सा निवधूया, सुपंडियाईहिं पंचहिं सहीहिं। सहिया चित्तपरिवखं, कुणमाणा वइ जणाणं ॥८५३॥ + अर्थ-इस प्रकारसे वह राजपुत्री सुंदर विचक्षणा पंडितादि पांच सखियो सहित लोकोंके चित्तकी परीक्षा करती भई रहे है ॥ ८५३॥ तं सोऊणं सबो, सहाजणो भणइ केरिसं चुजं । पूरिजंति समस्सा, किं केणवि परमणगयाओ ॥८५४॥ । अर्थ-वह वचन सुनके सब सभाके लोग कहें अहो कैसा आश्चर्य है दूसरेके मनोगत समस्या क्या कोई पूर्ण कर है सके है ॥ ८५४ ॥ SAROKAR-CASNOCALSCREOS For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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