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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ — उस राजाके उत्तमराजाओं की पुत्रियो ८४ चौरासी रानी हैं उन्हों में पहिली गुणमाला नामकी विशेष विवेकवती रानी है ।। ८४२ ॥ तीए य पंचपुत्ता, हिरण्णगब्भो य नेहलो जोहो । विजियारीय सुकन्नो, ताणुवरिं पुत्तिया चेगा ॥ ८४३ ॥ अर्थ - उसरानीके पांच पुत्र हैं उन्होंका नाम कहते हैं हिरण्यगर्भ १ स्नेहल २ योध ३ विजितारी ४ सुकर्ण ५ इन पांच पुत्रोंके ऊपर एक पुत्री है ॥ ८४३ ॥ सा नामेणं सिंगार, -सुंदरि सिंगारिणी तिलुक्कत्स । रूवकलागुणपुन्ना, तारुन्नालंकियसरीरा ॥ ८४४ ॥ अर्थ — उसका नाम शृंगारसुंदरी हैं कैसी हैं तीनलोकमे शृंगारशोभाकरनेवाली हैं और रूप कला गुणों करके पूर्ण है। यौवन अवस्थासे अलंकृत है शरीर जिसका ऐसी ॥ ८४४ ॥ | तीए जिणधम्मरयाइ, पंडिया तह वियक्खणा पउणा । निउणा दक्खत्ति सहीण, पंचगं अस्थि जिणभत्तं ८४५ अर्थ - जिन धर्ममें रक्त उस कन्या के पांच सखी है उन्होंका नाम कहते है पंडिता १ विचक्षणा २ प्रगुणा ३ निपुणा ४ दक्षा ५ कैसा है सखी पंचक तीर्थंकरका भक्त है ॥ ८४५ ॥ ताणं पुरो कुमारी, भणेइ अह्माणजिणमयरयाणं । जइकोइ होइ जिणमय-, विऊ वरो तो वरं होई ॥८४६ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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