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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तो उवज्झाओ तं आयरेण, पुरओ निवेसइत्ताणं । अप्पेइ सिक्खणत्थं, नियवीणं तस्स हत्थंमि ७८१ अर्थ - तदनंतर उपाध्याय उस वामनेको आदरसे आगे बैठाके सिखाने के वास्ते अपनी वीणा उस वामनेके हाथमें देवे ।। ७८१ ॥ वामणओ तं वीणं, विवरीयत्तेण पाणिणा लिंतो । संतिं वा तोडतो फोडतो तुंबयं वावि ॥ ७८२ ॥ अर्थ- वामना उस वीणाको हाथसे विपरीतपने लेता हुआ तांत तोड़ता भया तूंबेको फोड़ता हुआ ॥ ७८२ ॥ सवेसिं कुमराणं, हासरसं चैव वट्टयंतोवि । केवलदाणवलेणं, अग्घइ उवज्झायपासंमि ॥ ७८३ ॥ अर्थ- सर्व राजकुमरोंके हास्य रस बढ़ाता हुआ भी केवल दानके बलसे उपाध्यायके पास आदर योग्य होवे ॥ ७८३ ॥ सोवि परिक्खासमए, रक्खिजंतोवि तेहिं सवेहिं । कुंडलदाणवसेणं, कुमरिसहाए गओ झत्ति ॥ ७८४ ॥ अर्थ - वह वामनाभी परीक्षा समय में सबलोगोंके साथ अंदर प्रवेश करताथा द्वारपालने मने किया तब कुंडलदेके शीघ्र कुमरीकी सभामें गया ॥ ७८४ ॥ तं कयइच्छारूवं, कुमरी पासेइ निरुवमसरुवं । अन्ने वामणरूवं, पासंति निवाइणो सबे ॥ ७८५ ॥ अर्थ — किया है इच्छासे रूपजिसने ऐसा कुमरको कुमरी राजकन्या निरुपम उपमा रहित रूप जिसका ऐसा देखे और राजादिक सवलोक वामनेका रूप देखे ॥ ७८५ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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