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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbalirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ-सौधर्मदेवलोकमें रहनेवाला विमलेश्वर नामका देव वहां आया हुआ कुमरसे इस प्रकारसे कहे कैसा है देव हाथमें प्रधान हार है जिसके ऐसा इस प्रकारसे कहे ॥ ७७३ ॥ इच्छाकृतिव्योमगतिः कलासु, प्रौढिर्जयः सर्वविषापहारः । कंठस्थिते यत्र भवत्यवश्यं, कुमार! हारं तममुं ग्रहाण ॥ ७७४ ॥ ___ अर्थ-हे कुमर तुम इस हारको ग्रहणकरो यह हार कंठमें रहनेसे यह पांच कार्य निश्चयसे होवे है वही कहते हैं| जैसी इच्छा करे वैसा रूप बनावे १ और आकाशमें गतिनाम गमन २ सर्वकलामें निपुणपना ३ शत्रुओंको जीतना ४ सर्व प्रकारके जहरका उतरना ५॥ ७७४ ॥ एवं वदन्नेव स सिद्धचक्रा,-धिष्ठायकः श्रीविमलेशदेवः।। कुमारकंठे विनिवेश्य हारं जगाम धामाद्भूतमात्मधाम ॥ ७७५॥ [४] अर्थ-वह श्रीसिद्धचक्रका अधिष्ठायक श्रीविमलेश्वर नामका देव कुमरके कंठमें हारपहराके अपना धाम तेजसे || अद्भुत ऐसा स्वर्ग गया ॥ ७७५ ॥ तं लभ्रूण कुमारो, निचिंतो सुत्तओ अह पभाए । उटुंतोवि हु कुंडल,-पुर गमणं नियमणे कुणइ ७७६ है। RECENGALASSACREASSES For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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