SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 194
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीपा.च. १७ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ — उन पुत्रोंके ऊपर एक गुणसुंदरी नामकी पुत्री है रूपलावण्य सौंदर्य करके वह कन्या रंभा देवाङ्गनाके तुल्य है और कलाके समूहसे ब्राह्मी सरस्वतीके तुल्य है ॥ ७६४ ॥ तीए कया पन्ना, जो मं वीणाकलाइ निजिणइ । सो चेव मज्झभत्ता, अन्नेहिं न किंपि मह कर्ज ७६५ अर्थ-उन कन्याने प्रतिज्ञा करी है जो पुरुष वीणा बजानेकी कलामें मेरेको जीते उसीको भर्तार करना और पुरुषसे मेरे कुछ प्रयोजन नहीं ॥ ७६५ ॥ तं सोऊणं पत्ता, तत्थ नरिंदाण नंदणाणेगे । वीणाए अब्भासं, कुणमाणा संति पइदिवसं ॥ ७६६ ॥ अर्थ -- वह प्रतिज्ञा सुनके उस नगरमें बहुत राजपुत्र आए है निरंतर वीणाका अभ्यास करें हैं । ७६६ ॥ मासे मासे तेसिं, होइ परिक्खा परं न केणावि । सा वीणाए जिप्पइ, पञ्चक्खसरस्सईतुला ॥७६७॥ अर्थ - महीने २ में उन राजकुमरोंकी परीक्षा होवे है परन्तु किसी राजपुत्रने उसकन्याको वीणा बजाने में नहीं जीती कैसी है कन्या साक्षात् सरस्वतीके तुल्य है । ७६७ ॥ एगपरिक्खादिवसे, दिट्ठा सा तत्थ देव अम्हेहिं । रमणीण सिरोरयणं, सा पुरिसाणं तुमं देव ७६८ अर्थ - एक परीक्षाके दिनमें वह राजपुत्री हमने भी देखी परन्तु हम ऐसा जाने हैं हे देव हे महाराज सब स्त्रियोंके शिरो रन वह कन्या है सब पुरषोंके शिरो रत्न आप हो । ७६८ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy