SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 179
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmanair श्रीपाल- । अर्थ-वह धवल चिंतासे आकुल हुआ जितने उन गायनोंको दान नहीं देवे उतने डुंबने सेठसे कहा हेदेव हे महा- भाषाटीकाचरितम् शराज क्या हमारेपर नाराज भयाहो इससे दान नहीं देवो हो ॥७०१॥ | सहितम्. ॥८९॥3|एगते डुंबं पइ सो जंपइ, देमि तुजूझ भूरिधणं । जइ इवं मह कजं, करेसि केणवि उवाएणं ॥७०२॥ | अर्थ-यह डुंमका वचन सुनके सेठ एकान्तमें डुमसे कहे तेरेको बहुत धन देउं जो कोई उपाय करके एक मेरा है कार्य करे ॥ ७०२॥ डुंबोवि भणइ पढम, कहेह मह केरिसं तयं कजं । जेण मए जाणिज्जइ, एयं सज्झं असझं वा ७०३ 81 अर्थ-यह धवलका वचन सुनके डुंब बोला पहले मेरेको वह कैसा कार्य है सो कहो जिससे जानने में आवे वह टू कार्य साध्य है अथवा असाध्य है ॥ ७०३ ॥ धवलो भणेइ जो,नरवरस्स जामाउओइमो अत्थि। जइ तं मारेसि तुमं, तो तुह मुहमग्गियं देमि ७०४ 2. अर्थ-तब धवल सेठ कहे जो यह राजाका जमाई है जो तैं राजाके जमाईको मार देवे अर्थात् प्राणरहित करे तो 18| मैं जो मांगेसो देउं ॥ ७०४॥ हाडंबो भणेइ तं मारणंमि, इक्कुत्थि एरिसोवाओ। जं अन्नायकुलं तं, पयडिस्सं एस डुबुत्ति ॥ ७०५ ॥ SASSASSASSIRRIS ACANCERSALCHAK For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy