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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ-चक्रेश्वरी देवी क्या कहे सो कहते है रे रे देवो तुम पहले यह दुर्बुद्धि देनेवाले पुरुषको पकड़ो जिस कारणसे दसर्व अनर्थोंका मूल येही पुरुष है दूसरा नहीं ॥ ६६९॥ तो झति खित्तवालेण, सो नरो बंधिऊण पाएहिं, । अवलंविओ य कूवय-खंभंमि अहोमुहं काउं ६७० ___ अर्थ-चक्रेश्वरीके वचनके अनन्तर क्षेत्रपालने शीघ्र उस दुर्बुद्धि देनेवाले मनुष्यको पकड़के पग बांधके नीचा मुख करके कूपस्थंभमें लगादिया अर्थात् नीचा मुख ऊपर पग करके बांध दिया ॥ ६७०॥ दाऊण मुहे असुइं, खग्गेणं च्छिन्निऊण अंगाई। सो दिसिपालाणं वलिब्ब, दिन्नओ संतिकरणत्थं ६७१ PI अर्थ-उसके मुखमें अशुचि विष्ठा देके खड्गसे उसके अंग बाहू वगैरह काटके दिक्पालोंको वलीके जैसा शांति कर-13 |ने के लिए शरीरका टुकड़ा २ करके दशों दिशामें फेंक दिया ॥ ६७१॥ तत्तो सो भयभीओ, धवलोमयणाण ताण पिद्विठिओपभणेइ ममं रक्खह, रक्खह सरणागयं निययं ६७२ | अर्थ-तदनंतर डराहुआ धवलसेठ मदनसेना मदनमंजूषाके पीछे जाके और इस प्रकारसे बोला कि मैं तुम्हारे हासरणे आयाहूं मेरी रक्षा करो रक्षा करो ॥ ६७२ ॥ ६ता चक्केसरिदेवी पभणइ रे दुट्ट घिट्ट पाविट्ठ । एयाण सरणगमणेण, चेव मुक्कोसि जीवंतो ॥ ६७३॥ दी अर्थ-तदनंतर चक्रेश्वरी देवी कहे अरे दुष्ट अरे धेठा इन महा सतियोंके सरणे जानेसे तैं जीता हुआ रहा है ॥६७३॥ है| CACALCASCALCALCALCSCA For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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