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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir RECASSAMAGRAM तो सोऊणं ताओ, सविसेसं दुक्खियाउ चिंतंति । नूणमणेणं पावेण, चेव कयमेरिसमकजं ॥ ६६१॥ __ अर्थ-तदनंतर धवलसेठका वचन सुनके वे दोनों स्त्रियो विशेष दुःखी होके विचारकरे निश्चय इसी पापी क्रूरने ऐसा अकार्य किया यह जाना जाता है ॥ ६६१॥ इत्यंतरे उच्छलियं जलेहिं वियंभियं उब्भडमारुएहिं । समुन्नयं घोरघणावलीहिं, कडक्वियं रुद्दतडिल्लयाहिं | अर्थ-इस अवसरमें समुद्रका पानी उछला तथा दुःसह वायु वजने लगा और भयानक मेघकी घटा उत्पन्न भई चौतर्फ फैल गई और विजलियों चमकनेलगी और विजलियों कड़की ॥ ६६२॥ घोरंधयारेहिं विवाड्वियंच रउद्दसद्देहिं समुट्रियं च। अट्टहासेहिं पयटियं च, सयं च उप्पायसएहिं जायं ६३ 81 अर्थ-और घोर अंधकार विशेष करके बढ़ा और भयानक ध्वनियां होने लगीं अट्टहास होने लगा सैकडों उत्पात आपहीसे हुआ ॥ ६६३ ॥ तत्तो हल्लोहलिएसु तेसु पोएसु पोयलोएहिं, खलभलियं । जलजलियं, कलललियं मुच्छियं च रवणं ६६४ अर्थ-तदनंतर जहाजोका लोक व्याकुल हुआ और खलवले और झल झलितभया और कल कल शब्द युक्त भए और क्षण मात्र मूर्छित होगए ॥ ६६४॥ डम २ डमंतडमरुय, सद्दो अचंतरुहरूवधरो। पढमं च खित्तवालो, पयडीहओ सकरवालो ॥ ६६५ ॥ CRECRUGARCANCARELCALCAR श्रीपा.च.१५ For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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