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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तस्साभिमुहं रायावि, मंतिसामंतसंजुओ एइ । महया महेण कुमरं, पुरे पवेसेइ कयसोहे ॥ ६४४ ॥ अर्थ - राजा वसुपाल भी मंत्री सामंत सहित श्रीपालके सामने आया करीशोभाजिसकी ऐसे नगर में महोत्सवके साथ कुमरको प्रवेश करावे ॥ ६४४ ॥ काऊण य पडिवत्तिं, तस्स कुमारस्स असणवसणेहिं । पभणेइ सबहुमाणं, राया एयारिसं वयणं ६४५ अर्थ — और कुमरकी अशनपान वस्त्र वगैरहसे भक्ति करके राजा वसुपाल बहुमान सहित ऐसा वचन कहे ६४५ पुविं सहाइपत्तो, एगो नेमित्तिओ मए पुट्ठो । को मयणमंजरीए, महपुत्ती वरो होही ॥ ६४६ ॥ अर्थ - कैसे वचन कहे सो कहते है पहले मेरी सभामें एक नैमित्तिया आयाथा उसको मैंने पूछा मेरी मदनमंजरी पुत्रीका कौन भर्तार होगा ॥ ६४६ ॥ तेणुत्तं जो वइसाहसुद्ध, - दसमीइ जलहितीरवणे । अचलंतच्छायतरुतल, - ठिओ हवइ सो इमीइ वरो अर्थ – ऐसे पूछनेसे उस नैमित्तिएने कहा वैशाख सुदी दशमीके दिन समुद्र के किनारे जो वन है उसमें अचल छाया जिसकी ऐसे वृक्षके नीचे जो रहा होवे वह पुरुष इस कन्याका भर्तार होगा ॥ ६४७ ॥ अज्जं चिय तंसि तहेव, पाविओ वच्छ पुण्णजोएणं । ता मयणमंजरिमिमं मह धूयं ज्झत्ति परिणेसु ६४८ For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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