SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 151
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuti Gyanmandir श्रीपालचरितम् ॥ ७५॥ SCRECHARGADACCOR ६ तत्कालं चिय कुमरस्स, तस्स दाऊण मयणमंजूसं। काऊण य सामग्गिं, सयलंपि विवाहपवस्स ॥५८॥ दिभाषाटीकाहै। अर्थ-मुनिराज गयोंके अनन्तर राजा तत्कालही श्रीपाल कुमरको अपनी कन्या मदनमंजूसा देके और विवाह है सहितम्. उत्सवकी सर्व सामग्री तय्यार करके ॥ ५८३॥ तस्स भवणस्स पुरओ, मिलिए सयलंमि नयरलोयंमि।महया महेण रन्ना, पाणिग्गहणंपिकारवियं ५८४ __ अर्थ-उस जिन मंदिरके आगे सर्व नगरके लोग मिलनेसे बड़े उत्सवके साथ पाणिग्रहण कराया ॥ ५८४॥ दिन्नाइंबहुविहाई, मणिकंचणरयणभूसणाईणि। दिन्ना य हयगयावि य, दिनोय सुसारपरिवारो ५८५ | अर्थ-बहुत प्रकारके मणिरत्न जडे हुए ऐसे सोनेरत्नोके भूषणदिए और घोडा हाथी बहुतसे दिए सार परिवार दिया५८५ दिन्नो य वरावासो, तत्थ ठिओ दोहिं वरकलत्तेहिं । सहिओ कुमारराओ, जाओ सवत्थ विक्खाओ ५८६ ___ अर्थ-प्रधान आवास प्रासाद रहेनेके वास्ते दिया उस आवासमें रहा हुआ दोय स्त्रियों सहित राजकुमार सर्वत्र प्रसिद्ध भया ॥ ५८६ ॥ निच्चपि तंमि चेइयहरंमि, कुमरो करेइ साणंदो। पूयापभावणाहिं, सहलं नियरिद्धिवित्थारं ॥५८७॥ ॥ ७५॥ ___ अर्थ-निरंतर उस जिनमंदिरमें कुमार आनंद सहित पूजा प्रभावनादिक करके अपनी समृद्धिका विस्तार सफलकरे ॥ ५८७ ॥ SAMACHAR For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy