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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीपाल- अर्थ-उन दो देवियोंका नाम कहे हैं उनमें एक सौभाग्यसुंदरी दूसरी रूपसुंदरी उन्होंमें पहली रानी सौभाग्यसे | भाषाटीकाचरितम् || सुंदर है देह जिसका ऐसी और दूसरी रतिके जैसी ॥४७॥ 18 सहितम्. पढमा माहेसरकुल, संभूया तेण मिच्छदिदित्ति । बीया सावगधूया, तेणं सा सम्मदिदित्ति ॥४८॥ __ अर्थ-उन दोनोंमें पहली सौभाग्यसुंदरी रानी महेश्वरीके कुलमें उत्पन्न भई है इस कारणसे मिथ्या विपरीत है। दृष्टि जिसकी ऐसी मिथ्यादृष्टनीथी दूसरी श्रावककी पुत्री होनेसे रूपसुंदरी रानी समीचीन है दृष्टि जिसकी ऐसी सम्यक् दृष्टिनी थी ॥४८॥ ताओ सरिसवयाओ, समसोहग्गाओ सरिसरुवाओ। सावत्ते विह पायं, परूप्परं पीतिकलियाओ॥४९॥ अर्थ-वह दोनो रानी कैसी है सदृश है यौवनअवस्था जिन्होंकी, और सदृश है सौभाग्य जिन्होंका, और सरीखा रूप सौंदर्य जिन्होंका, और सपत्नीका भाव रहतेभी निश्चय बहुलता करके परस्पर प्रीति सहित रहती थी॥४९॥ नवरं ताण मणट्ठिय, धम्मसरूवं वियारयंताणं । दूरेण विसंवाओ, विसपीऊसेहिं सारित्थो ॥५०॥ | अर्थ-इतना विशेष है कि अपने मनमें रहाहुआ धर्मका स्वरूप विचारते दोनों रानियोंके अत्यन्त विसंवाद याने | विवाद होता था कैसा विसंवाद जहर अमृतके सदृश परस्पर विरुद्ध होनेसे ॥५०॥ ताओयरमंतीओ, नव नव लीलाहि नरवरेण समंथोवंतरंमि समए, दोवि सगब्भाओजायाओ॥५१॥ SPECARRASSES For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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