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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmanair अर्थ-श्रीसिद्धचक्रमें जे नवपद उन्होंमें वड़ा जो प्रथमपद वह स्वरूप जिसका ऐसा उसका सम्बोधन हे श्रीसिद्ध हे | जिनेन्द्र और चमर बलिन्द्र आदि असुरेन्द्र सौधर्म ईशानादि सुरेन्द्र उप लक्षणसे नागेन्द्रादिककाभी ग्रहण है इन्हों करके पूजित है चरण कमल जिन्होंका ऐसे आपको नमस्कार होवे ॥ ५४५॥ सिरिरिसहेसरसामिय, कामियफलदाणकप्पतरुकप्य!। कंदप्पदप्पगंजण, भवभंजण देव तुज्झ नमो ॥ ५४६ ॥ PI अर्थ-हे श्रीऋषभेश्वरस्वामी वांछितफलदेने कल्पवृक्षके सदृश और कंदर्पनामकामकां जो अभिमान उसको मर्दन |करनेवाले हे भवभंजन हे देव आपको नमस्कार होवो ॥ ५४६ ॥ सिरिनाभिनामकुलगर,-कुलकमलुल्लासपरमहंससम, । असमतमतमोभर,-हरणिकपईव तुज्झ नमो ४७ ६ अर्थ-श्रीनाभिनाम जो कुलगर उनोका जो कुलरूपकमल उसको विकास करनेमें उत्कृष्ट सूर्यसदृश उसका सम्बोधन हे श्रीनाभि और नहीं विद्यमान है तुल्य जिसके ऐसा अज्ञानरूप अंधकारकासमूह उसके हरनेमे अद्वितीय प्रदीप समान 18| ऐसा हे देव आपके लिए नमस्कार होवो ॥ ५४७ ॥ ६ सिरि मरुदेवासामिणि, उदरदरीदरियकेसरिकिसोर?। घोरभुयदंडखंडिय,-पयंडमोहस्स तुज्झ नमो५४८ SAECAUSALESALASAALC For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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