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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीपाल- अर्थ-उस मालवदेशमें पुराणी उज्जैनी नामकी अतिशयप्रधान नगरी है कैसा है मालवदेश दुर्भिक्ष और उमर-भाषाटीकाचरितम् ||नाम बलात्कारसे परद्रव्य हरना यह दुःकाल डमर इन दोनोंने नहीं प्रवेश किया है जिसमें ऐसा ॥४१॥ | सहितम्. सायकेरिसा अणेगसो जत्थ पयावईओ, नरुत्तमाणं च न जत्थ संखा । महेसरा जत्थ गिहे गिहेसु, सचीवरा जत्थ समग्गलोया ॥ ४२ ॥ अर्थ-वह उज्जैनी नगरी कैसी है जिस नगरीमें अनेक प्रजापति हैं लोकमें तो एकही प्रजापति ब्रह्मा प्रसिद्ध है। है उस नगरीमें प्रजा नाम संततिके अनेक स्वामी हैं और जिस नगरीमें पुरुषोत्तमोंकी संख्या नहीं है लोकमें तो एकही पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण प्रसिद्ध है और वहां बहुत उत्तम पुरुष है और जिस नगरीमें घर २ में महेश्वर नाम महर्धिक है। लोकमें तो एकही महेश्वर प्रसिद्ध है और जिस नगरीमें सम्पूर्ण लोग सचीवर हैं लोकमें तो एकही इन्द्राणीका वर है| इन्द्र प्रसिद्ध है और वहां तो सब लोग वस्त्रसहित हैं ॥४२॥ Pघरे घरे जत्थरमंतिगोरी,रंभासिरीओय पए पएय।वणेवणे याविअणेगरंभा,रईय पीईविय ठाण ठाणे४३| ___ अर्थ-जिस नगरीमें घर २ में गौरियों जिनका रज नहीं देखा गया है ऐसी कन्या क्रीड़ा करे है लोकमें तो एकही गौरी पार्वती कैलासपर्वतपर क्रीड़ा करती भई प्रसिद्ध है उस नगरमें तो घर २ में गौरिया हैं ॥ लोकमें तो एकही|8|॥६॥ श्रीलक्ष्मी कृष्णकी स्त्री है और जिस नगरीमें तो ठिकाने २ लक्ष्मी हैं लोकमें तो एकही रंभा देवाङ्गना प्रसिद्ध है और For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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