SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 128
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | तम्मज्झे रिसहेसर, पडिमा कणयमणिनिम्मिया अत्थि । तिहुयणजणमणजणिया, -णंदा नवचंदलेहव ॥ अर्थ — उस मंदिरमें सोने और मणिरत्नसेंवनीभई श्री ऋषभदेवस्वामिकी प्रतिमा है कैसी है प्रतिमा नवीन चन्द्रमाकी | रेखाके जैसी तीनभवनके लोकोंके मनमें उत्पन्न किया है आनन्द हर्ष जिसने ऐसी ॥ ४९३ ॥ तं सो खेयरराया, निश्चं अच्चेइ भत्तिसंयुत्तो । लोओवि सप्पमोओ, नमेइ पूएइ झापइ ॥ ४९४ ॥ अर्थ- वह विद्याधरोंका राजा भक्तिसहित उस जिन प्रतिमाकी नित्यपूजा करे है नगर में रहनेवाले लोग भी हर्षसहितहोके उस प्रतिमाको नमस्कार करे है पूजाकरे है ध्यावे है ॥ ४९४ ॥ |सा नरवरस्स धूया, विसेसओ तत्थ भत्तिसंजुत्ता । अट्ठपयारं पूयं, करेइ निश्चं तिसंज्झासु ॥ ४९५ ॥ अर्थ — वह पहले कही मदनमंजूषानामकी राजकुमरी विशेष भक्ति संयुक्त उस जिनमंदिरमें तीनों संध्यामें निरंतर अष्टप्रकारी पूजाकरे है ॥ ४९५ ॥ अन्नदिणे विहिनिउणा, सा नरवरनंदिणी सपरिवारा। कयविहिवित्थरपूया, भावजुया वंद देवे ॥९६॥ अर्थ - अन्यदिनमें विधिमें निपुण चतुर वह राजकुमरी परिवारसहित विस्तारविधिसे करी पूजा जिसने ऐसी और शुभभावयुक्त देवनंदना करे ॥ ४९६ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy