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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ-तब पहले धवलसेठके सुभटोंने महाकाल राजाके सुभटोंका बल नाम सैन्यको भगाया तदनंतर महाकाल राजा बलवान घोड़े पर सवार होके आपसंग्रामके वास्ते आया ॥ ४३७ ॥ नटुं धवलभडेहिं, ववरवइतेयमसहमाणेहिं । पयचारी जुज्झतो, धवलो पुण पाडिओ बद्धो ॥ ४३८ ॥ अर्थ - तब वरपति वघरकूलका स्वामी राजाकातेज नहीं सहते हुए धवलके सुभट दशदिशमें भागे बाद प्यादल युद्ध करता हुआ धवलसेठको पृथ्वीपर गिराके बांधा ॥ ४३८ ॥ तं बंधिऊण रुक्खे, राया सुहडे निओइऊण निए। सत्थस्स रक्खणत्थं, सयं च चलिओ पुराभिमुहं ४३९ अर्थ - राजा महाकाल उसधवल सेठको वृक्षमें बंधवाके सार्थकी रक्षाकेलिए अपने सुभटोंको वहां रखके आप अपने नगरके सामने चला ॥ ४३९ ॥ इत्थंतरंमि कुमरो, धवलं बुल्लावए कहसु इन्हि । ते सुहडा कत्थगया, जेसिं दिन्ना तए कोडी ॥४४०॥ अर्थ — इस अवसर में श्रीपालकुमर धवलसेठसे बोला अहो धवल तुमकहो इसवक्त तुम्हारे सुभट कहां गए जिन्होंको तुम करोड़ सोनयिय्या देते थे । ४४० ॥ धवलो भणेइ भो भो, खयंमि किं कुणसि खारपक्खेवं । किं वा दट्टाणुवरिं, फोडयदाणक्कियं कुणसि ४४१ | For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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