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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir IH अर्थ-और कुमरने राजा और धवल सेठके कितने सुभटोंका केस कान नासिका वगैरह अवयव अपने बाणसे काटा ! | परंतु दयासे किसीका जीवतव्य नहीं लिया अर्थात किसीको मारा नहीं ॥ ४०४ ॥ तं पासिऊण धवलो, चिंतइ एसो न माणुसो नणं । खयरो वसुरवरोवा, कोइ इमोऽणप्पमाहप्पो ४०५ PI अर्थ-ऐसे श्रीपाल कुमरको देखके धवलसेठने विचार किया निश्चय यह मनुष्य नहीं है किंतु बहुत माहात्म्य जिसका | ऐसा यह कोई विद्याधर अथवा देवहै महानहै प्रभावजिसका ऐसा ॥ ४०५॥ काऊण अंजलिं मत्थयंमि, तो विन्नवेइ तं धवलो। देव तुममेरिसीए, सत्तीए कोवि खयरोऽसि ॥४०६॥ __ अर्थ-तदनंतर धवलसेठ मस्तकमें अंजिलीकरके श्रीपालकुमरको विनतीकरे हे देव हे महाराज आपऐसी शक्तिसे कोई विद्याधरहो ॥ ४०६॥ द्विता मह कुणसु पसायं, थंभियवेडीण मोयणोवायं। किंपि हु करेह जेणं, उवयारकरा हु सप्पुरिसा ४०७६ ___ अर्थ-जिस कारणसे मेरेपर प्रसन्नहोके मेरा जहाज स्तंभितभयाहै इन्होंके चलानेका उपाय करो जिस कारणसे सत्पुरुष निश्चय उपकार करनेवाले होवेहे ॥ ४०७॥ कुमरेणुत्तं जइ तुह, मोयाविनंति जाणवत्ताइं । ता किं लब्भइ सोवि हु, भणेइ दीणारलक्खंति ॥४०८॥ ___ अर्थ-कुमरने कहा जो तुह्मारा जहाज चलावे तो क्यापावे तब धवलसेठ बोला १ लाख सोनयिया देउं ॥ ४०८॥ ASSASSIS SAUSISISTA For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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