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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वहुकणयको डिगाहिय, कयाणगो णेगवाणिउत्तेहिं । सहिओ सो सत्थवाई, भरुयच्छे आगओ अस्थि ३७९ अर्थ- बहुत करोड़ों सोनयोंका किरयाना जिसने ग्रहण कियाहैं ऐसा और अनेक वानियोंके पुत्रो सहित वह सार्थवाह भरौंच नगरमें आयाहै ॥ ३७९ ॥ जाओ य तत्थ लाहो, पवरो सो तहवि दवलोहेणं । परकूलगमणपउणो, पगुणइ बहुजाणवत्ताई ॥३८०॥ अर्थ — उस भरौचनगर में बहुत लाभ भयाहै तौभी वह सार्थपति द्रव्यके लोभसे परकूलनाम समुद्रके परतट जानेके लिए तत्पर भया बहुत जहाज तय्यार करे ॥ ३८० ॥ | मज्झिमजुंगो एगो, सोलसवर कूव एहिं कयसोहो । चत्तारि य लहुजुंगा, चउचउकूवेहिं परिकलिया ॥ ३८१ ॥ अर्थ - उन जहाजोंमें एक मध्यमजुंगनामका जहाज सोलहप्रधान कूपकस्तम्भोंकरके करी है जिसकी शोभा ऐसा है और चार लघुजुंगनामके जहाजहैं चार २ कूपस्तम्भों करके सहित है ।। ३८१ ॥ वडसफर पवहणाणं, एगसयं बेडियाण अट्ठसयं । चउरासी दोणाणं, चउसट्ठी वेगडाणं च ॥ ३८२॥ अर्थ- वृहत सफर नामका जहाज एक सौ है बेड़िका नामका जहाज १०८ हैं द्रोण जहाजविशेष ८४ हैं बेगड़ नामका जहाजविशेष ६४ है ॥ ३८२ ॥ सिलाणं चउपन्ना, अवात्ताणं च तहय पंचासा । पणतीसं च खुरप्पा, एवं सयपंचबोहित्था ॥ ३८३ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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