SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 84
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ७५ ) ॥९॥ अरिकरिहरितिण्णु ण्हंबु चोराहिवाही, समरडमरमारीरुद्द खुद्दोवसग्गा ॥ पलयमजिअसंती कित्तणे झत्ति जंती, निविडतरत मोहा भरकरालंखिअ व ॥१०॥ निचिअदुरिअदारुदित्तझाणग्गिजाला, परिगय मिव गोरं, चिंतिअं झाणरूवं ॥कणय निहसरेहा कंतिचोरं करिजा, चरथिर मिह लच्छि गाढसंथंभिअब ॥११॥ अडविनिवडिआणं पत्थिवुत्तासिआणं, जलहि लहरि हीरं ताण गुत्ति ट्ठियाणं ॥ जलिअ जलणजाला लिंगिआणं च झाणं, जणयइ लहु संति संतिनाहा जिआणं ॥ १२ ॥ हरि करि परिकिण्णं पक्क पाइकपुण्णं, सयलपुहविरजं छड्डिअं आणसजं ॥ तणमिव पडिलग्गं जेजिणामुत्तिमग्गं, चरण मणुपवण्णा इंतु ते मे पसण्णा ॥ १३॥ छणससिवयणाहि फुल्लनित्तुप्पलाहिं, थणभरनमिरीहिं मुहिगिजोदरीहिं ।। ललिअभुअलयाहिं पीणसोणिस्थलीहिं, सयसुररमणीहिं वंदिआ जेसि पाया ॥ १४ ॥ अरिस किडिभकुट्ट गंठि कासाइसार, खयजर वण लूआ साससोसोदराणि ॥ नहमुंहदसणच्छी कुच्छिकण्णाइरोगे, मह जिणजुअपाया सुप्पसाया हरंतु ॥ १५ ॥ इय गुरुदुहतासे पक्खिए चाउमासे, जिणवर दुगथुत्तं वच्छरे वा पवित्तं ॥ पढइ सुणइ सिज्झा एह झाएइचित्ते, कुणह मुंणह विग्धं जेण घाएह सिग्धं ॥ १६ ॥ इय विजयाजियसत्तुपुत्त सिरिअजिअ जिणेसर, तह अइराविससेण तणइ पंचम चकीसर ॥ तित्थंकर सोलसम संति जिणवल्ल ह संथुअ, कुरु मंगल मम हरसुदुरिअमखिलंपि धुणंतह ॥ १७ ॥ इति श्रीलघुअजितशांतिस्तवनं द्वितीयं सरणम् ॥ २॥ नमिऊण पणय सुरगण, चूडामणिकिरणरंजिअं मुणिणो ॥ चलणजुअलं महाभय, पणासणं संथवं वुच्छं ॥ १ ॥ सडियकरचरण For Private And Personal Use Only
SR No.020721
Book TitleShravak Nitya Krutya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkrupachandrasuri
PublisherNirnaysagar Press
Publication Year1923
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy