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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 19 ) ये पुन्य ब मेरे, जगत गुरु देव मन ध्याया ॥ श्र० ॥ ५ ॥ मृत समयुक्ति शासन की तहत कर चित्त व्हाया ॥ मुके है स शिवपुरकी, कृपायुतचंद्र जलसाया ॥ श्र० ॥ ६ ॥ इति ॥ पदम् ॥ १ ॥ ॥ राग तमाखू ॥ ॥ जीवन मारा तेवीसमा जिएचंद, वामा नंदन जेव्यारे, साहिबा झांरा जाव शुं रे ह्मांरा राज जीव० अश्वसेन कुल चंद, पाप करम सन मेय्यारे ॥ साहि० ॥ श्रनादिनारे ॥ ह्मां ॥ १ ॥ जी० ॥ मूरती मोहन वेल, नील वरण तनु बाजेरे ॥ सा० ॥ सोहामणीरे ॥ ह्मां० ॥ जी० ॥ मुख बबि अगम अपार, पूनिम निशि जिमराजै रे ॥ सा० ॥ रजनी करू रे ॥ ह्मां० ॥ २ ॥ जी० ॥ नयन मीरसरेल, कामण गारा प्यारा रे ॥ सा० ॥ ॥ मन हरू रे ॥ जी० ॥ ह्मा० ॥ जाल विशाल रशाल, अष्टमी शशि सुख कारारे ॥ सा० ॥ जव्य चकोरने रे ॥ ह्मा० ॥ ३ ॥ जी० ॥ चिंतामणी प्रभु पास, लोडवपुर में वीराजै रे ॥ सा० ॥ सुख करु रे || ह्मा० ॥ सहसफणा महाराज, दरसण वांबित काजै रे ॥ सा० ॥ दुःख हरु रे ॥ ह्मा० ॥ ४ ॥ जी० ॥ संघमिड्यो वहु थाट, हेजै घणे गह गाटे रे ॥ सा० ॥ हरख शुं रे ॥ ह्मा० ॥ जी० ॥ अष्ट दिवस उबरंग, रथयात्रा बहुरंगे रे ॥ सा० ॥ उमंग शुं रे ॥ ह्मा० ॥ ए ॥ जी० ॥ दीगे तुम दीदार, हिव प्रभु मुजने तारो रे ॥ सा० ॥ हित धरी रे ॥ ह्मा० || जी० ॥ तुम सम वरन देव, दीगे नही सुखकारो रे ॥ सा० ॥ जगतमां रे ॥ ह्मा० ||६|| जी० ॥ तुम पद पंकज सेव, For Private And Personal Use Only
SR No.020721
Book TitleShravak Nitya Krutya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkrupachandrasuri
PublisherNirnaysagar Press
Publication Year1923
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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