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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५१) वर उपगारी कामित सुरतरु कंदाजी ॥१॥ अरिहंतसिषप्रवचन श्राचारजस्थविरपाठकमन श्राणोजी ॥ साधुनाण दंसणदसमो-पद विनयचारित्र वखाणो जी ॥ ब्रह्मक्रिया तप गोयम जिनपद समाधिपूर्वश्रुतजाणो जी ॥ श्रुतनक्ति तीरथ प्रनावन वीसथानक पहिचानो जी॥२॥ श्रीमुखवीर जिनेसर जाखे ए पद सेवो प्राणी जी ॥ तीर्थकरपद एहथी लहियै जिन श्रागमनी वाणी जी ॥ ज्ञाता अंगे गणधरदेवे विवरीने घणीबाणी जी ॥ ए आराधनथी सिव लहियै निरुपमसुखनिसानीजी ॥३॥ तीन काल पांचेशकस्तव देव वंदन विधि कीजे जी ॥ काउसग्गपरदक्षिणा गुणनो विधिसुं जिनपूजीजे जी॥ खमासमण विहुं टंकपमिकमणो स्तवना नित्य सुणीजे जी॥ कृपाचंग सुयदेवि पसाये मन वंछित फल सीजे जी ॥४॥ इति ॥ वीसथानक स्तुति ॥१॥ ॥अथ श्री बीजनी स्तुति ॥ ॥ मनसुख वंदो लावेनवियण श्रीसीमंधर राया जी ॥ पांचसैं धनुष प्रमाण विराजित कंचनवरणी कायाजी ॥ श्रेयांशनरपति सत्यकि नंदन वृषल लंडन सुखदायाजी ॥ विजय जली पुखलाव विचरे सेवे सुरनर पाया जी॥१॥ काल अतीत जे जिनवर हूवा होस्ये जेह अनंता जी ॥ संप्रतिकाले पंचविदेहे वरतेबीस विख्याता जी॥ अतिशयवंत अनंत गुणाकर जगबंधव जगत्राता जी॥ध्यायकध्येय स्वरूप जे ध्यावे पावे शिव सुख साताजी ॥२॥अरथे श्री अरिहंत प्रकाशी सूत्रे गणधर श्राणी जी॥ मोहमिथ्यात्व तिमिरजरनाशन For Private And Personal Use Only
SR No.020721
Book TitleShravak Nitya Krutya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkrupachandrasuri
PublisherNirnaysagar Press
Publication Year1923
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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