SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (10) उंचो करिके खमासमण देकें, श्वा ॥ सं०॥ ॥ चैत्यवंदन करुं जी. एसें कहि के चैत्यवंदन करे. ॥अथ चउक्कसाय ॥ ५३ चनक्कसाय पमिमलुटलूरण, उऊय-मयण-वाण मुसुमूरण ॥ सरसपियंगुवन्नु गयगामिज, जयन पास नुवणत्तयसामि य॥१॥ जसु तणु कति कमप्पसिणिघल, सोहर फणमणिकिरणालि. घन ॥नं नव जलहरतमिल्लयलंचिय, सो जिणु पासु पयन वंनिय ॥२॥ ॥ अर्हन्तो नगवंत इंजमहिताः सिझाश्च सिद्धिस्थिता, आचार्या जिनशासनोन्नतिकरा पूज्या उपाध्यायकाः॥ श्रीसिशांतसुपातका मुनिवरा रत्नत्रयाराधकाः, पंचैते परमेष्ठिनः प्रतिदिनं कुर्वतु वो मंगलम् ॥ १॥ ॥पीछे नमुत्थूणंसें लेके जयवीयराय पर्यंत कहके परकी, चलमासी और संवबरीके रोज तो बकी शांति सुणे, परंतु और दिनोमें गेटी शांति सुणे, सो लिखते हैं. ॥अथ लघुशांतिस्तवः ॥ ५४ ॥ शांति शांतिनिशांतं, शांतं शांताशिवं नमस्कृत्य ॥ स्तोतुः शांतिनिमित्तं, मंत्रपदैः शांतये स्तौमि ॥१॥मिति निश्चितवचसे, नमो नमो जगवतेऽहते पूजाम् ॥ शांतिजिनाय जयवते यशस्विने स्वामिने दमिनाम् ॥ ३ ॥ सकलातिशेषकमहा, संपत्तिसमन्विताय शस्याय ॥ त्रैलोक्यपूजिताय च, नमो नमः शांतिदेवाय ॥ ३ ॥ सर्वामरसुसमूह, स्वामिकसंपूजिताय निजिताय॥जुवनजनपालनोद्यत-तमाय सततं नमस्तस्मै ॥४॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020721
Book TitleShravak Nitya Krutya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkrupachandrasuri
PublisherNirnaysagar Press
Publication Year1923
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy