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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३६ ) ॥ श्रथ जयति लिख्यते ॥ ४९ ॥ ॥ जय तिदु वरकप्परुरक जय जिए धन्नं तरि, जय ति कलाएकोस रिअक्करि केसरि ॥ तिदुपजण अविलंघिया जुवणत्तय सामिश्र, कुणसुसुहाई जिस पास यंजय पुरचि ॥ १ ॥ तइ समरंत लहंति कत्ति वर पुत्तकसत्तई, धम सुवन्न हिरम पुस जनुंजइ रई ॥ पिरकहि मुरक असंखसुरक तुह पास पसाइए, इय तिदुखण वरकप्परुरकसुरकर कुए मह जिए || २ || जरजकर परिजुन कसणहुछसुकुछिए, चरकुरकीए खएखुप नर सलि सूलिए ॥ तुह जिए सरणरसायण लढु हुंति पुण्सव, जय धमंतरि पास महवि तु रोगहरो भव ॥ ३ ॥ विकाजोइस मंततंत सिङ्घि पयत्ति, व विह सिद्धि सिकाइ तुह नामिए ॥ तु नामि पवित्त वि जण होइ पवित्तन, तं तद्दृऋण कलाकोस तु पास निरुत्तन ॥ ४ ॥ खुद्द पवत्त मंत-तंतजंता विसुत्तर, चरथिरगरलगदुग्गखग्गरिज वग्ग विगंज || shares as निवार दय करि, रिाई दर स पासदेन पुरिअक्करिकेसरि ॥ ५ ॥ तुह आणा थंने जीमदयुद्धुर सुरवर, ररकस - जरक - फणिंद विंद चोरानलजलहर || जलथलचारिरन्दखुद्द पसु जोइणि जो, श्य तिहुण विसंधिया जय पास सुसामिका ॥ ६ ॥ पि दिल जत्तिन्नर. निप्जर, रोमंचं चित्राचारुकाय किसरनर सुरवर ॥ जसु सेवा कमकमलजुल परकालिया कलिमलु, सो जुवपत्तयसामि पास मह मद्दन रिजबलु ॥ ७ ॥ जय जोश्र For Private And Personal Use Only
SR No.020721
Book TitleShravak Nitya Krutya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkrupachandrasuri
PublisherNirnaysagar Press
Publication Year1923
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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