SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 43
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३४ ) ॥ अथ संध्याकाल सामायिक विधिर्लिख्यते ॥ ७ || पिछले पोरें धर्मशाला प्रमार्जी वस्त्रादिक पहिलेहे. जो वेरो यो दुवे, तो दृष्टिप मिलेहण करे | पीछे गुरु आर्गे श्रथवा थापनाचार्यजी आगें वी भूमि प्रमार्जी असण वाम पासे मूकी खमासमण देई कहे || इलाका० ॥ सं ॥ ज० ॥ समायिक मुहपत्ती पहिलेढुं ? गुरु कहे पहिलेदेह. कही ॥ फिर खमासम देई मुहपत्ती पहिले हे || पीछे खमासमण देई ॥ शलाका० ॥ सं० ॥ ज० ॥ सामायिक संदिस्सा ? गुरु कहे संदिस्सावेह || फिर खमासमण देई इलाका० ॥ सं० ॥ ज० ॥ सामायिक वाढं ? गुरु कहे, गएद इवं कही फिर खमासमण देई || अवनत श्रई तीन नवकार गुणी कहे. इवाकारेण सं० गवन् ! पसा करी सामायिक दंरुक उच्चरावोजी ॥ गुरु कहे उच्चरावेमो || पीछे करेमि नंते सामाइयं ॥ इत्यादि सामायिक सूत्र गुरु वचन अनुभाषण करतो थको तीन वार उच्चरी खमासम देई || इलाका० ॥ सं० ॥ ० ॥ इरियावहियं परिकमामि ? गुरु कहे परिक्कमेह || पीछे इवं कही ॥ इवामि परिकमितं ॥ इरियावहियाए इत्यादि पाठसे इरियावहियं पकिमी || एक लोगस्सका काउस्सग्ग करी, णमो अरिहंताणं कही, कारसग्ग पारी मुखें प्रगट लोगस्स कही, नीचे बैठके मुहपत्ती पहिले हि वांदा देई कहे. इछाकार भगवन् ! पसाउ करी पञ्चरकाण करावोजी. पीछे गुरु दिवस चरिम पच्चरकाण करावे ॥ गुरु जावें थापनाचार्य समदें अथवा स्वमुखे वा aha साधर्मी मुखें पच्चरके ने जो तिविहार उपवास की धो For Private And Personal Use Only
SR No.020721
Book TitleShravak Nitya Krutya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkrupachandrasuri
PublisherNirnaysagar Press
Publication Year1923
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy