SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (20) रि, काही चिरेण काले ॥ ४१ ॥ लोणा बहुविहा, न य संजरिया परिक्कमणकाले || मूलगुणउत्तरगुणे, तं निंदे तं च गरिहामि ॥ ४२ ॥ तस्स धम्मस्स केवल पन्नत्तस्स || अनुहिम राहणार विरप्रेमि विराहणाए ॥ तिविदेश परितो, वंदामि जिले चनधीसं ॥ ४३ ॥ जावंति चे श्राई० ॥ ४४ ॥ जावंत केवि साहू० ॥ ४५ ॥ चिरसंचियपावपणासपीए, जवसय सदस्समहणीए ॥ चडवीसजिए विणिग्गयक हाईं, बोलंतु मे दिहा ॥ ४६ ॥ मम मंगलमरिहंता, सिधा साहू धम्मो ॥ सम्मद्दिधी देवा, दिंतु समाहिं च बोहिं च ॥ ४७ ॥ परिसिद्धाणं करणे, किच्चाणमकरणे परिक्रमणं ॥ सहा तहा, विवरीयपरूवणाए का ॥ ४८ ॥ खामेमि सबजी वे स जीवा खमंतु मे ॥ मित्ती मे सबएसु, वेरं मज्ज न के‍ ॥ ४९ ॥ एवमहं आलोइला, निंदिका गरहि सम्मं ॥ तिविहेण परिक्कतो, वंदामि जिसे चवीसं ॥ २० ॥ इति ॥ ३१ ॥ इहां प्रजात के पकिमण में देवसिके ठिकाने राज्यं कहना ॥ पीछे दो वांदणा देकर अवग्रहमाहि रह्यो अकोज कहे ॥ ॥ इलाका० ॥ सं० ॥ ज० ॥ अष्नुहिमि प्रिंतर ॥ राइयं खामे ? गुरु कहे खामेह खामेमि राज्यं कहके संकासा प्रमार्जन पूर्वक गोमालीये बेठके, वे वांह परिलेहि ॥ मुहपत्ती वामहासुं मुखें देई, दक्षिण हाथ गुरु सामो करी ॥ नीचो नम्यो थको जं किंचि अप्पत्तियं ॥ इत्यादि संपूर्ण कहे ॥ १ ट्टिपणी - तस्स धम्मस्स केवली पन्नत्तस्स इस पदकुं मनमें विचारणा मुखसे उच्चारण नहि करणा इति संप्रदाय. For Private And Personal Use Only
SR No.020721
Book TitleShravak Nitya Krutya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkrupachandrasuri
PublisherNirnaysagar Press
Publication Year1923
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy