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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १४ ) कानसें लेकें जिमा कान पर्यंत निल्लाम पूंजी, मुहपत्ती आर्गे रखकें तिसके मध्य जागमें गुरुचरणोंकी कल्पना कर के || अहो कार्य इत्यादि श्रावर्त्तकर के श्रोमा नीचा नमकर मस्त कमे अंजलि कर के गुरु सम्मुख दृष्टि स्थापनकर कें ॥ खमपिको ने किलामो ॥ इत्यादि पाठ कछे पीछे फेर ॥ जन्त्ता ने इत्यादि आवर्त कर के खफा होके पीछे पगसें भूमि पूंजता वग्रह वाहिर निकलकें स्वस्थान पर आवे. वहां ॥ यावस्सिया || इत्यादि पाठ सर्व कहे, सो लिखते है | ॥ सुगुरुवदा ॥ ॥ इामि खमासमणो वंदिरं, जावणिकाए निसी हिआए ॥ जाह मे मिलग्गदं निसीहि ॥ अहो कार्य काय संफासं, खमणिको ने किलामो ॥ अप्प किलंताएं बहु सुनेने, दिवसो बकतो, जत्ता ने, जवणि च ने, खामेमि खमासमणो ॥ देवसि वकम्मं श्रावस्सिाए परिकमामि खमासमणां ॥ देवसिया, सायाए । तित्तीसन्नयराए जं किंचि मिलाए, मणडुक्कमाए वयदुक्कमाए, कायडुक्कमाए कोहाए, मापाए, मायाए, लोजाए, सबका लियाए, सबमिठोवयाराए, सबधम्माइकमा ए ॥ आसायलाए जो मेरो कर्ज, तस्स खमासमणो परिकमामि || निंदामि गरिहामि पाएं वोसिरामि ॥ १ ॥ डुजी वारके वांदामे आवस्सिए ए पद न कर्हेना, - अनेराश्यें राइ वश्कता, तथा चनमासीयें चलमासी वइतो परकीयें परको कंतो, संववरीयें संवारी व कंतो || एसीतरे पाठ कदेना ॥ इति ॥ २६ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020721
Book TitleShravak Nitya Krutya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkrupachandrasuri
PublisherNirnaysagar Press
Publication Year1923
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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