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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१३) सबलोए अरिहंत आणं ॥ करेमि काउस्सग्गं वंदण वत्तिआए ॥ इत्यादि कहना, सो लिखते हे ॥ ॥अथ वंदणवत्तिाए । ॥ वंदणवत्तिाए, पूअणवत्तिाए ॥ सक्कार वत्तिश्राए, सम्माणवत्तिाए ॥ बोहिलान वत्तिाए ॥ निरुवसग्गवत्तिआए ॥ १॥ सम्झाए मेहाए धिए ॥ धारणाए अणुप्पेहाए । वठमाणीए गमि कालस्सग्गं ॥॥इति ॥१३॥ ॥पीजे अन्न कही चारनवकार अथवाएक लोगस्सका कालस्सग्ग करके पारके ज्ञानाचार शुद्धि निमित्त पुरकरवरदी० ॥ सुयस्स जगवर्ड करेमि कालस्सग्गं ॥ इत्यादि पाठ कहे, सो लिखते हे ॥ ॥अथ पुरकरवरदी॥ ।। पुरकरवरदीवढे धायसंमे अजंबुदीवे अ॥जरहे रवय विदेहे, धम्मागरे नमंसामि ॥१॥ तमतिमिरपमलविसएस्स सुरगणनरिंदमहिस्स ॥ सीमाधरस्स वंदे, पप्फोमित्र मोहजालस्स ॥२॥ जाईजरामरणसोगपणासणस, कल्याणपुरकलविसालसुहावहस्स ॥ को देवदाणवनरिंदगणच्चिस्स धम्मस्स सार मुवलप्त करे पमायं ॥३॥ सिधे जो पय एमो जिणमए नंदी सया संजमे ॥ देवं-नाग-सुवन्न-किन्नर-गणस्सअनावच्चिए ॥ लोगो जब पनि जगमिणं, तेलुकमचासुरं ॥ धम्मो वढन सास विजय, धम्मुत्तरं वडत ॥ ॥४॥इति ॥ २५॥ सुअस्स लगवर्ड करेमि कामस्सगं वंदएवत्तियाए ॥ ए पाठ संपूर्ण कह कर अन्नबुससिएणं कह For Private And Personal Use Only
SR No.020721
Book TitleShravak Nitya Krutya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkrupachandrasuri
PublisherNirnaysagar Press
Publication Year1923
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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