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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१५६) तप तपिने कर्म क्षयकीनो, दुद्धर अणसण पालीरे भवि०॥४४॥ केवलीथइने राजादिकसहु, सिद्धिवधूकरझाली, सादि अनंतस्थिति सुखपायो, वरती जगमे खुसालीरे ॥ भवि० ॥४५॥ मनमोहनमहिमानोआगर, मेंथुणियो सिवगामी, उगणीसे इठन्तरवरसे, वीरजन्म अभिरामीरे ॥ भवि० ॥४६॥ आदीसरजिनवर सुपसाय, झाबुवानगरे अधिकारी, श्रीजिनकृपाचंद्रसरि सेवो जिन शासन जयकारीरे भवि०॥४७॥ ॥ इति रोहिणी स्तवन छढालियो । (अथ पूर्णिमा बृहत्स्तवनम् ) (दोहा) स्वस्तिश्रीसुखसंपदा, कारण जिनवरदेव ॥ आदीश्वर अरिहंतजी, सारेसुरनरसेव ॥१॥ पूनिमतिथिआराधवा, तपकरियेसुविशेष ॥ बारेमास पूनिमतणो, चरित्र कहुं लवलेश ॥२॥ (ढाल १) जिम जिम गिरिवरदेखियेरे ॥ एदेशि० ॥ श्रीजिनधर्मसुहंकरोरे । आराधोगुणखांणसनेही । पूनिमपर्वमोटोकटोरे । मासबारे मन आंण ॥ स० ॥३॥ जिमजिमपर्व आराधियेरे । तिमतिमलहिये सुरक । स०॥ जिनशासनजगमें जयोरे, मेटे भव भव दुरक ॥ स० ॥४॥ श्रावणमासमें जाणियेरे ॥ वदितीज श्रेयांस निरवाण ॥ स० ॥ अनंतनाथ सातम चव्यारे । आठम नमि जन्म जाण ॥ स० ॥५॥ कुंथुनाथ नवमी चव्यारे । शुदि दूज सुमति एह । स० ॥ पांचम नेमि जनमियारे । छठ दीक्षाथीनेह ॥ स०॥६॥ आठम पासजी सिवलह्योरे । पूनिम सुव्रतचव्याईश ॥स०॥ उपवास करि आराधियेरे । कल्याणक सुजगीश ॥ स० ॥७॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020721
Book TitleShravak Nitya Krutya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkrupachandrasuri
PublisherNirnaysagar Press
Publication Year1923
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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