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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १४१ ) पाय | वीरजिनेसर इम भणे जी, सुणश्रेणिक नरराय भ० से० ॥ ३० ॥ एक एक पद आराधतांजी, केई पाम्या भव अंत, नव पद ते निज आतमाजी, ध्याता ध्येय लहंत, भ० से० ॥ ३१ ॥ तीर्थकर पद पामस्येजी, तुंइणभरतमझार, इम सांभलि नृप आनंदियोजी, निजघरपोतो सुखकार भ० से० ॥ ३२ ॥ कलश ॥ इम वीरजिनवरभुवन दिनयर नवपदमहिमावरणव्यो, सुरतवंदररहि चोमासो सिद्धचक्रगुणगणस्तव्यो, संवतउगणीसेपचोत्तर आश्विन शुदिसातमदिने, जिनकृपाचंद्रसूरिपभणे वर्तो मंगल प्रतिदिने ॥ ३३ ॥ इति नवपद वृद्ध स्तवनम् ॥ ॥ अथ दूजनो स्तवनम् ॥ ( दुहा ) वर्द्धमान जिनवंदिये, त्रिशलानंदनदेव, सिंहलंछन सेवितसदा, सुरपतिसारे सेव || १|| जन्मसमेथी जग गुरु, अतुलवलि वड वीर, तप उत्तम विधियुतको, जलनिधि जिम गंभीर ॥ २ ॥ ( ढाल पहली ॥ ) कृपानाथ मुझवीनती अवधार ॥ ए देशी || धर्म करो जिनराजनोजी, आणी उल्लटभाव, दोयभेदे आराधतांजी, पामोआत्मखभाव, भविकजनसेवो श्रीजिनवाणी, निजगुणमणिनी खाणी ॥ भ० ।। १ ।। तिथि आराधन फलतणोजी, शास्त्रमiहे अधिकार, बीजआराधो भविजनाजी, तपकिरिया विधिसार भ० || २ || दोयमासलघु दूजनेजी, जावजीव उत्कृष्ट, दोयवरस दोयमासनीजी, करो बीज शुभदृष्ट ॥ भ० ॥ ३ ॥ पडिकमणा दोय टंकनाजी, देववंदन निरधार, विधिसेतीफल नीपजेजी, पामेभवनोपार ॥ भ० ॥ ४ ॥ बीजदिवसनो सहु जुवेजी, चंद्रोदयसुप्रसिद्ध, वधतिकलातिमजाणजोजी, धर्मथी For Private And Personal Use Only
SR No.020721
Book TitleShravak Nitya Krutya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkrupachandrasuri
PublisherNirnaysagar Press
Publication Year1923
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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