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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१३६) दलो, सुरनर सारे सेव ॥ १ ॥ भद्रेसरमें दीपतो, देरासर मनुहार, वीरजिनेसर जगजयो, बावनदेहरी सार ॥२॥ त्रिसलानंदन जगधणीए, सुख संपति करतार, त्रिकरणयोगे प्रणमतां, कृपाचंद सुखकार ॥३॥ इति श्रीवीरजिन चैत्यवंदनं संपूर्णम् ॥ ॥अथ श्रीनेमिजिनचैत्यवंदनं ॥११॥ नेमिसरजिन जगधणी, रैवतगिरिसिणगार, यादवकुल नभ दिनमणि, भवियण ने सुखकार ॥१॥ तीन कल्याणक इहां थयां, दीक्षानाण निरवाण, भव्य मनोरथ पूरवा, चिंतामणी समजाण ॥२॥ शिवरमणी रंगे वर्या ए, बावीसमजिनचंद, कृपाचंद नितप्रति नमै, शिवसुखतरूनोकंद, ॥ ३ ॥ इति नेमिजिन चैत्यवं-दन संपूर्णम् ॥ ॥ अथ श्रीचतुर्विशति जिनलांछन चैत्यवंदनं ॥१२॥ रिषभ वृषभ गज अजितने, संभवघोडोजाण, अभिनंदनने वांदरो, कौंच सुमति मन आण ॥१॥ पद्म पद्म स्वस्तिक सुपार्थ, शशिचंद्रप्रभ लहिये, मकर सुविधि शीतलश्रीवत्स, श्रेयांसखडगी कहिये ॥२॥ वासुपुज्य महिषतणो, विमल वराह नो जाणो, अनंतश्येन वज्र धर्मने, शांति मृग पहिचानो ॥३॥ कुंथुनाथने, बोकडों, अर नंद्यावर्त होय, मल्लीघट सुव्रत काछवो, नमि निलोत्पल जोय ॥ ४ ॥ नेमि संख फणि पार्थने, वीर सिंह कहाय, कृपाचंद्र ध्वज युतनमुं, चउवीसे जिनराय ॥ ५॥ इति चतुविंशतिजिनलांछनचैत्यवंदनं संपूर्णम् ॥ ॥पूनिमचैत्यवंदनं ॥ १३॥ : श्रीजिनसासनजगजयो, पर्वसिरोमणिजाण, पूनिमपर्वमोटो कह्यो, For Private And Personal Use Only
SR No.020721
Book TitleShravak Nitya Krutya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkrupachandrasuri
PublisherNirnaysagar Press
Publication Year1923
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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