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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५ ) ॥ [ इरियावहियं ॥ || इछाकारेण संदिस्सह जगवन् ॥ इरियावहियं परिक्कमामि ॥ इ, इछामि परिक्कमिनं ॥ १ ॥ इरियावहियाए विराहणाए ॥ २ ॥ गमला गमणे ॥ ३ ॥ पाणक्कम बीयकमणे हरियकमये ॥ जैसा उत्तिंग पग दग मट्टी मकमसंताणा संकमणे ॥ ४ ॥ जे मे जीवा विराहिया ॥ ५ ॥ एगिंदिया बेदिया तेईदिया चरिंदिया पंचिंदिया ॥ ६ ॥ जिया वत्तिया लेसिया संघाइया संघट्टिया परियाविया ॥ किलामिया उद्दविया गार्ड घाणं, संकामिया जीविया ववरोविया, तस्स मिष्ठामि डुकरं ॥ ॥ ८ ॥ इति ॥ ॥ अथ तस्स उत्तरी ॥ ॥ तस्स उत्तरी करणेणं ॥ पायश्चित्त करणेणं ॥ विसोही करणं ॥ विसली करणेणं ॥ पावाणं कम्माएं || पिग्घायणET || वामि काउस्सगं ॥ ए ॥ ॥ अथ अन्न ऊससिएणं ॥ ॥ अन्न ऊससिएणं, नीससिएएं, खासिएणं, बीएएंजंजाइए, उड्डणं, वाय निसग्गेणं, जमलिए, पित्तमुचाए ॥१॥ सुमेहिं अंगसंचालेहिं ॥ सुडुमेहिं खेलसंचालेहिं सुदुमेहिं टिप्पणी- श्रावश्यक चूर्णि १ आवश्यक बृहत्वृत्तिः २ याव श्यक लघुवृत्तिः ३ नवपद प्रकरण ४ योगशास्त्र ५ विधिप्रपा ६ श्रावदिनकृत्य 9 श्रावकधर्म प्रकरण ८ पंचाशक वृत्तिः ए इत्यादि अनेक ग्रन्थ मे सामायकर्मे पेहेले करेमि जंते पिछे इरियावहि करना कहा है. For Private And Personal Use Only
SR No.020721
Book TitleShravak Nitya Krutya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkrupachandrasuri
PublisherNirnaysagar Press
Publication Year1923
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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