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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १२३ ) ॥ श्री दादाजीको स्तवन लि० ॥ बिल ऋद्धि समृद्धि मिली । शुभयोगे पुन्य दशा सफली । जिनकुशलसूरि गुरु अतुलवली । मन चंछित आप दादो रंगवलि ॥ १ ॥ मंगल लीलसमें विपुला । नव नवय महोच्छव राजयला । सुपायै गुरु चढ़ती कला | सुकलीणी पुत्रवती महिला ॥ २ ॥ सबही दिन थायै सबला । सदवास कपूर तणा कुरला । हयगय रथ पायक बहुला | कल्लोलकरै मंदिर कमला || ३ || बीझै चमर निसाण घुरै । नवैदरवारखड़ा पुहरै । जय जय कर जोड़ी उचरै । सांनिध्य गुरू सब काजसरै || ४ || सरसा भोजनपान सदा । दुख रोग दुकाल न होय कदा | अविचल ऊलट अंगमुदा । गुरुकूरम दृष्टी प्रसन्न सदा ॥ ५ ॥ घम घम मादल नाद घमें । बत्ती से नाटक रंगर | प्रगट्यो पुन्य प्रताप हमैं | सबला अरियण ते आयनमें ||६|| तनसुख मनसुख चीरतनें । पहिरै वेलाउल होयरनें । ध्यावो कुशल गुरू एक मनें । जृंभक सुर मंदिर भरै धनें ॥ ७ ॥ ततखिण घण खच्यो आवै । करि स्याम घटामेह वरसाबै । तिसीया तोय तुरत पावै । जलदाता त्रिजगसुजसगावै ॥ ८ ॥ लहिर्या जल कल्लोल करै । प्रवहण भवसायर मझिडरै || बूड़ता वाहन जे समरै । ते आपद निवै उवरै || ९ || खड़ खड़ खड़ग प्रहारव है । सोदामनि जिम समसेस है | कुशल कुशल गुरु नाम कहै । ते खेम कुशल रण मझ लहै ॥ १० ॥ धुंभसकल परचा पूरै । श्रीनागपुरै संकट चूरै | मंगलोर अधिकै नूरै । देरावर भटालै दूरै ॥११॥ वीरमपुरवाने सुधरै । खंभातपुर विक्रमनयरै । जिनचंदमूरि For Private And Personal Use Only
SR No.020721
Book TitleShravak Nitya Krutya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkrupachandrasuri
PublisherNirnaysagar Press
Publication Year1923
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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