SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 120
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१११) अखंड नियम होवे, तो समताभावरखकें संवरपणामें रहे. परतु० मुखसें नवकार मंत्रकामी उच्चारण करे नहिं. स्थापनाजीके हाथ लगावे नहिं ओरजो मृतककों छुवा न हो मात्र आठ प्रहर पडिक्कमण न करे ॥.किसीकु न छीवे तो दोय स्नानसें शुद्ध भैसके जब बच्चा होय, तब १५ पनर दिन पीछे दूध पीणो कल्पे. गायके बच्चा होय तो १० दश दिन पीछे दुध पीणो कल्पे. बकरीको दुध ८ आठ दिन पीछे पीणो कल्पे ॥ ॥१ ऋतुवती स्त्री, चार दिन भांडादिकको न छुवे. २ चार दिन प्रतिक्कमण न करे, ३ पांच दिन देवपूजा न करे. ४ रोगादिक कारणे तीन दिवस उपरांत कोइ स्त्रीको रक्त चलता दीसे, जिसका विशेषदोष नहिं ॥ शुद्ध विवेकसें पवित्र हो कर दिन ५ पांच पीछे स्थापना पुस्तक छुवे, जिनदर्शन करे, अग्रपूजा करे, परंतु अंगपूजा न करे, साधुकों पडि लामे. ऋतुवंती तपस्या करे, सो तो सफल होय. परंतु ऋतुदिनमें जिनपूजा प्रतिकमणादिक क्रिया सफल न होवे, ऐसा चर्चरी ग्रंथमें कहा है. जिसके घरमें जन्म मरणका सुतक होवे, उहां १०॥१२ वार दिन तक साधु आहार पाणी न वहोरे. सुतकवाले का घरका जलसें तथा अग्निसें १२ बार दिन तक देवपूजा न करे. निशीथसुत्रके शोलमा उदेशामें जन्म मरणके सूतकवालेका घर दुगंच्छनीक कहा हे. गायके मूत्रमें २४ चोवी प्रहर पीछे. भैसके मूत्रमे १६ सोल प्रहर पीछे गाडर. गधेडी. घोडीके मूत्रमें ८ आठ प्रहर पीछे. नर नारी के मूत्रमें अंतरमुहूर्त पीछे. संमूच्छिम जीव उपजे. इत्यादि सूतकका संक्षेप विचार इहां For Private And Personal Use Only
SR No.020721
Book TitleShravak Nitya Krutya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkrupachandrasuri
PublisherNirnaysagar Press
Publication Year1923
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy