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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १०५ ) वाणि चखाण करंता || जाणवि वर्द्धमानजिणपाया, सुर नर किन्नर आवह राया ॥ १२ ॥ कंत समोहिय जलहलकंता, गयणविमाणहि रणरणकंता || पेखवि इंदभूइ मनचिंते, सुरआवे अम यज्ञहुते ॥ १३ ॥ तीरतरंडकजिम ते वहिता, समवसरण पुहता गहगहिता ॥ तो अभिमानें गोयम जंपे, इण अवसर कोपे तणु कंपे ॥ १४ ॥ मूढालोक अजाण्युं बोले, सुर जाणंता इम कांड डोले || मो आगल कोइ जाण भणीजें, मेरुअवर किमओपमा दीजें ॥ १५ ॥ वस्तु ॥ वीर जिणवर वीर जिणवर नाण संपन्न पावापुरसुरमहिय, पत्तनाहसंसारतारण ।। तिहिं देवइ निम्महिय, समवसरण बहु सुरक कारण || जिणवरजगउज्जोयकरे, तेजहि कर दिनकार सिंहासण सामी ठव्यो, हुओतो जयजयकार ॥ १६ ॥ भासउ ॥ तो चढियो घणमाण गजे, इंदभूय भूयदेव तो । हुंकारो कर संच - रिह, कवणसु जिणवर देव तो ।। जोजन भूमि समवसरण, पेखवि प्रथमारंभ तो ।। दहदिशि देखई विबुधवधू, आवंती सुररंभ तो ॥ १७ ॥ मणिमय तोरणदंड ध्वज, कोसीसे नवघाट तो ॥ वयरविवर्जितजंतुगण, प्रातिहारिज आठ तो || सुर नर किन्नर असुरवर, इंद्र इद्राणी राय तो ॥ चित्तः चमकिय चिंतव ए, सेवंतां प्रभुपाय तो ॥ १८ ॥ सहस किरण सामी वीरजिण, पेखिअ रूप विसाल तो, एह असंभव संभव ए, साचो ए इंद्र जाल तो ॥ तो बोलावइ त्रिजग गुरु, इंद्रभ्रूइ नामेण तो ॥ श्रीमुख संसा सामि सवे, फेडे वेदप तो ।। १९ ।। मान मेल मद ठेल करे, भगतहिं नाम्यो सीस तो ॥ पंच सयांसुं व्रत लियो ए, गोयम पहिलो सीस तो ॥ बंध For Private And Personal Use Only
SR No.020721
Book TitleShravak Nitya Krutya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkrupachandrasuri
PublisherNirnaysagar Press
Publication Year1923
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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