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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir शय्या-सूत्र उद्वर्तना और परिवर्तना __ उद्वर्तना का अर्थ है एक बार करवट बदलना, और परिवर्तना का अर्थ है बार-बार करवट बदलना। प्राचार्य जिनदास महत्तर अावश्यक चूणि में उद्वर्तन का अर्थ करते हैं—'एक करवट से दूसरी करवट बदलना, बायीं करवट से दाहिनी करवट या दाहिनी से बायीं करवट बदलना।' और परिवर्तना का अर्थ करते हैं-'पुनः वही पहले वाली करवट ले लेना ।' 'वामपासेण निवनो संतो जं पल्लत्थति, एतं उठवत्तणं । जं पुणो वामपासेण एव परियत्तणं ।' प्राचार्य हरिभद्र भी ऐसा ही कहते हैं | परिवर्तना का प्राकृत मूलरूप परियट्टणा' भी मिलता है। ___ 'उबट्टणाए! से पहले संथारा शब्द का प्रयोग भी बहुत-सी प्रतियों में मिलता है । उसका अर्थ किया जाता है 'सथारे पर करवट बदलना।' परन्तु जिनदास महत्तर और हरिभद्र आदि प्राचीन श्राचार्य उसका उल्लेख नहीं करते । अतः हमने भी मूल पाठ में इसको स्थान नहीं दिया है । वैसे भी कुछ महत्त्वपूर्ण नहीं है । शय्या सूत्र यह स्वयं ही है । अतः करवट शय्या पर ही ली जायगी। उसके लिए शय्या पर करवट बदलना, यह कथन कुछ गम्भीर अर्थ नहीं रखता। कर्करायित 'कर्करायित' शब्द का अर्थ 'कुड़कुड़ाना' है । शव्या यदि विषम हो, कठोर हो तो साधू को शान्ति के साथ सब कष्ट सहन करना चाहिए । साधू का जीवन ही तितिक्षामय है | अतः उसे शय्या के दोष कहते हुए कुड़कुड़ाना नहीं चाहिए । स्वप्न-प्रत्यया प्रस्तुत-सूत्र में 'श्राउलमाउलाए' के ग्रागे 'सोअणवत्तियार' पाठांश पाता है। उसका अर्थ है-स्वप्नप्रत्यया, अर्थात् स्वप्न के प्रत्यय = निमित्त से होने वाली सयमविरुद्ध मानसिक क्रिया । प्राचार्य हरिभद्र ने इसका सम्बन्ध 'बाउलमाउलाए' से जोड़ा है। प्रकरण की दृष्टि से ग्रागे के शब्दों के साथ भी इसका सम्बन्ध है । For Private And Personal
SR No.020720
Book TitleShraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages750
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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