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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४१८. त्तियों को गिनने के लिए अँगुली हिलाना, तथा दूसरे व्यापार के लिए भौंह चला कर संकेत करना । श्रमण-सूत्र Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir (१८) वारुणी दोष - जिस प्रकार तैयार की जाती हुई शराब में से बुड़बुड़ शब्द निकलता है, उसी प्रकार अव्यक्त शब्द करते हुए खड़े रहना । अथवा शराबी की तरह झूमते हुए खड़े रहना । (१६) प्रेक्षा दोष-पाठ का चिन्तन करते हुए वानर की तरह प्रोटों को चलाना | [ प्रवचनसारोद्धार ] योग शास्त्र के तृतीय प्रकाश में श्रीहेमचन्द्राचार्य ने कायोत्सर्ग के इक्कीस दोष बतलाए हैं। उनके मतानुसार स्तंभ दोष, कुड्य दोष, गुली दोष और दोष चार हैं; जिनका ऊपर स्तम्भकुड्य दोष और गुलिक दोष नामक दो दोषों में समावेश किया गया है। G ( १३ ) साधु की ३१ उपमाएँ १ ) उत्तम एवं स्वच्छ कांस्य पात्र जैसे जल-मुक्त रहता है, उस पर पानी नहीं ठहरता है, उसी प्रकार साधु भी सांसारिक स्नेह से मुक्त होता हैं । ( २ ) जैसे शंख पर रंग नहीं चढ़ता, उसी प्रकार साधु राग-भाव: से रंजित नहीं होता । (३) जैसे कछुवा चार पैर और एक गर्दन - इन पाँचों अवयवों को संकोच कर, खोपड़ी में छुपाकर सुरक्षित भी संयम क्षेत्र में पाँचों इन्द्रियों का गोपन र बहमुत्र नहीं होने देता । रखता है, उसी प्रकार साधु करता है, उन्हें विषयों की ( ४ ) निर्मल सुवर्ण जैसे प्रशस्त रूपवान् होता है, उसी प्रकार साधु भी रागादि का नाश कर प्रशस्त श्रात्मस्वरूप वाला होता है । ( ५ ) जैसे कमल - पत्र जल से निर्लिप्त रहता है, उसी प्रकार For Private And Personal
SR No.020720
Book TitleShraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages750
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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